ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 93/ मन्त्र 1
उद्घेद॒भि श्रु॒ताम॑घं वृष॒भं नर्या॑पसम् । अस्ता॑रमेषि सूर्य ॥
स्वर सहित पद पाठउत् । घ॒ । इत् । अ॒भि । श्रु॒तऽम॑घम् । वृ॒ष॒भम् । नर्य॑ऽअपसम् । अस्ता॑रम् । ए॒षि॒ । सू॒र्य॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उद्घेदभि श्रुतामघं वृषभं नर्यापसम् । अस्तारमेषि सूर्य ॥
स्वर रहित पद पाठउत् । घ । इत् । अभि । श्रुतऽमघम् । वृषभम् । नर्यऽअपसम् । अस्तारम् । एषि । सूर्य ॥ ८.९३.१
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 93; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 1
पदार्थ -
हे (सूर्य) प्रेरक प्रभो! आप (श्रुतामघम्) अपनी अन्तःप्रेरणा से समृद्ध, (वृषभम्) ज्ञानदाता (नर्यापसम्) मानव के हितकारक कार्यों की सम्पादक (अस्तारम्) काम, क्रोध व तामस भावनाओं को दूर कर देनेवाली प्रज्ञाशक्ति को (अभि, घ-इत्) लक्ष्य करके ही निश्चय (उत् एषि) उदित होते हैं॥१॥
भावार्थ - प्रभु से प्रेरणा पा करके मानव-मन अर्जित ज्ञान के उपदेश, यज्ञ आदि सर्व हितकारी कार्यों और काम, क्रोध आदि दुष्ट भावनाओं को दूर कर देने आदि में प्रवृत्त होता है॥१॥
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