Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 99 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 99/ मन्त्र 2
    ऋषिः - नृमेधः देवता - इन्द्र: छन्दः - बृहती स्वरः - गान्धारः

    मत्स्वा॑ सुशिप्र हरिव॒स्तदी॑महे॒ त्वे आ भू॑षन्ति वे॒धस॑: । तव॒ श्रवां॑स्युप॒मान्यु॒क्थ्या॑ सु॒तेष्वि॑न्द्र गिर्वणः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मत्स्व॑ । सु॒ऽशि॒प्र॒ । ह॒रि॒ऽवः॒ । तत् । ई॒म॒हे॒ । त्वे इति॑ । आ । भू॒ष॒न्ति॒ । वे॒धसः॑ । तव॑ । श्रवां॑सि । उ॒प॒ऽमानि॑ । उ॒क्थ्या॑ । सु॒तेषु॑ । इ॒न्द्र॒ । गि॒र्व॒णः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मत्स्वा सुशिप्र हरिवस्तदीमहे त्वे आ भूषन्ति वेधस: । तव श्रवांस्युपमान्युक्थ्या सुतेष्विन्द्र गिर्वणः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मत्स्व । सुऽशिप्र । हरिऽवः । तत् । ईमहे । त्वे इति । आ । भूषन्ति । वेधसः । तव । श्रवांसि । उपऽमानि । उक्थ्या । सुतेषु । इन्द्र । गिर्वणः ॥ ८.९९.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 99; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 3; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    हे (सुशिप्र) ज्ञान द्वारा प्रदीप्त (हरिवः) इन्द्रियवशी (इन्द्र) मेरे मन! तू, (मत्स्व) मग्न हो; (तम् ईमहे) इस स्वरूपवाले ही तुझे हम चाहते हैं; (त्वे) इस रूपवाले ही तुझे (वेधसः) ज्ञान युक्त [इन्द्रियाँ] (भूषन्ति) भूषित करती हैं। हे (गिर्वणः इन्द्र) हे स्तुत्य प्रभु! (सुतेषु) [परमसत्य की सम्पन्नता हेतु किये गये] यज्ञों में (तव) तेरी (श्रवांसि) अन्तःप्रेरणाएँ (उक्थ्या) प्रशंसनीय तथा (उपमानि) आदर्श हैं॥२॥

    भावार्थ - जब मानव-मन ज्ञानवान् हो इन्द्रियों पर पूर्ण नियन्त्रण कर लेता है, तो वह एक विशेष प्रकार के आनन्द में डूबा रहता है। ऐसे मन की अन्तःप्रेरणायें मानव को महान् सत्य की ओर ले जाती हैं॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top