Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 15
    ऋषिः - शुनःशेप ऋषिः देवता - गणपतिर्देवता छन्दः - आर्षी स्वरः - निषादः
    7

    प्र॒तूर्व॒न्नेह्य॑व॒क्राम॒न्नश॑स्ती रु॒द्रस्य॒ गाण॑पत्यं मयो॒भूरेहि॑। उ॒र्वन्तरि॑क्षं॒ वीहि स्व॒स्तिग॑व्यूति॒रभ॑यानि कृ॒ण्वन् पू॒ष्णा स॒युजा॑ स॒ह॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒तूर्व॒न्निति॑ प्र॒ऽतूर्व॑न्। आ। इ॒हि॒। अ॒व॒क्राम॒न्नित्य॑व॒ऽक्राम॑न्। अश॑स्तीः। रु॒द्रस्य॑। गाण॑पत्य॒मिति॒ गाण॑ऽपत्यम्। म॒यो॒भूरिति॑ मयः॒ऽभूः। आ। इ॒हि॒। उ॒रु। अ॒न्तरि॑क्षम्। वि। इ॒हि॒। स्व॒स्तिग॑व्यूति॒रिति॑ स्व॒स्तिऽग॑व्यूतिः। अभ॑यानि। कृ॒ण्वन्। पू॒ष्णा। स॒युजेति॑ स॒ऽयुजा॑। स॒ह ॥१५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रतूर्वन्नेह्यवक्रामन्नशस्तो रुद्रस्य गाणपत्यम्मयोभूरेहि । उर्वन्तरिक्षँवीहि स्वस्तिगव्यूतिरभयानि कृण्वन्पूष्णा सयुजा सह ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्रतूर्वन्निति प्रऽतूर्वन्। आ। इहि। अवक्रामन्नित्यवऽक्रामन्। अशस्तीः। रुद्रस्य। गाणपत्यमिति गाणऽपत्यम्। मयोभूरिति मयःऽभूः। आ। इहि। उरु। अन्तरिक्षम्। वि। इहि। स्वस्तिगव्यूतिरिति स्वस्तिऽगव्यूतिः। अभयानि। कृण्वन्। पूष्णा। सयुजेति सऽयुजा। सह॥१५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে রাজন্ ! (স্বস্তিগবূ্যতিঃ) সুখ সহ যাহার মার্গ, এমন আপনি (সয়ুজা) এক সঙ্গে যুক্তকারিণী (পূষ্ণা) বল পুষ্টি যুক্ত স্বীয় সেনা (সহ) সহ (অশস্তীঃ) নিন্দিত শত্রুদের সেনাকে (প্রতূর্বণ) মারিয়া (এহি) প্রাপ্ত হউন । শত্রুদের দেশ (অবক্রামন্) লঙ্ঘন করিয়া (এহি) আসুন (ময়োভূঃ) সুখকে উৎপন্নকারী আপনি (রুদ্রস্য) শত্রুদিগকে রোদনকারী স্বীয় সেনাপতির (গাণপত্যম্) সেনাসমূহের স্বামিত্ব (এহি) প্রাপ্ত হউন এবং (অভয়ানি) স্বীয় রাজ্যে সব প্রাণিদিগকে ভয়রহিত (কৃণ্বন্) করিয়া (অন্তরিক্ষম্) (উরু) পরিপূর্ণ আকাশকে (বীহি) বিবিধ প্রকারে প্রাপ্ত হউন ॥ ১৫ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- রাজার অত্যন্ত উচিত যে, স্বীয় সেনাকে সর্বদা সুশিক্ষা, হর্ষ, উৎসাহ ও পোষণযুক্ত রাখিবেন । যখন শত্রুদিগের সহিত যুদ্ধ করিতে ইচ্ছা করিবেন তখন স্বীয় রাজ্যকে উপদ্রবরহিত করিয়া যুক্তি তথা বল দ্বারা শত্রুদিগকে মারিবেন এবং সজ্জনদিগের রক্ষা করিয়া সর্বত্র সুন্দর কীর্ত্তি স্থাপন করিবেন ॥ ১৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - প্র॒তূর্ব॒ন্নেহ্য॑ব॒ক্রাম॒ন্নশ॑স্তী রু॒দ্রস্য॒ গাণ॑পত্যং ময়ো॒ভূরেহি॑ ।
    উ॒র্ব᳕ন্তরি॑ক্ষং॒ বী᳖হি স্ব॒স্তিগ॑বূ্যতি॒রভ॑য়ানি কৃ॒ণ্বন্ পূ॒ষ্ণা স॒য়ুজা॑ স॒হ ॥ ১৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - প্রতূর্বন্নিত্যস্য শুনঃশেপ ঋষিঃ । গণপতির্দেবতা । আর্ষী জগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top