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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 2
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    नक्तो॒षासा॒ सम॑नसा॒ विरू॑पे धा॒पये॑ते॒ शिशु॒मेकं॑ꣳ समी॒ची। द्यावा॒क्षामा॑ रु॒क्मोऽअ॒न्तर्विभा॑ति दे॒वाऽअ॒ग्निं धा॑रयन् द्रविणो॒दाः॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नक्तो॒षासा॑। नक्तो॒षसेति॒ नक्तो॒षसा॑। सम॑न॒सेति॒ सऽम॑नसा। विरू॑पे॒ इति॒ विऽरू॑पे। धा॒पये॑ते॒ऽइति॑ धा॒पये॑ते। शिशु॑म्। एक॑म्। स॒मी॒ची इति॑ सम्ऽई॒ची। द्यावा॒क्षामा॑। रु॒क्मः। अ॒न्तः। वि। भा॒ति॒। दे॒वाः। अ॒ग्निम्। धा॒र॒य॒न्। द्र॒वि॒णो॒दा इति॑ द्रविणः॒ऽदाः ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नक्तोषासा समनसा विरूपे धापयेते शिशुमेकँ समीची । द्यावाक्षामा रुक्मोऽअन्तर्वि भाति देवाऽअग्निन्धारयन्द्रविणोदाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नक्तोषासा। नक्तोषसेति नक्तोषसा। समनसेति सऽमनसा। विरूपे इति विऽरूपे। धापयेतेऽइति धापयेते। शिशुम्। एकम्। समीची इति सम्ऽईची। द्यावाक्षामा। रुक्मः। अन्तः। वि। भाति। देवाः। अग्निम्। धारयन्। द्रविणोदा इति द्रविणःऽदाः॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 2
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যে (অগ্নিম্) বিদ্যুৎকে (দ্রবিণোদাঃ) বলদায়ক (দেবাঃ) দিব্য প্রাণ (ধারয়ন্) ধারণ করে যাহা (রুক্মঃ) রুচিকর হইয়া (অন্তঃ) অন্তঃকরণে (বিভাতি) প্রকাশিত হয়, যাহা (সমনসা) এক সমান মনোবিজ্ঞান সম্পন্ন (বিরূপে) অন্ধকার ও প্রকাশের বিরুদ্ধ যুক্ত (সমীচী) সর্ব প্রকার সকলের প্রাপ্ত (দ্যাবাক্ষামা) প্রকাশ ও ভূমি তথা (নক্তোষাসা) রাত্রি ও দিবস যেমন (একম্) এক (শিশুম্) বালকের দুইটি মাতা (ধাপয়েতে) দুগ্ধপান করায় সেইরূপ তোমরাও জানিবে ॥ ২ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন জননী-মাতা ও ধাত্রী বালককে দুগ্ধপান করায় সেইরূপ দিন ও রাত্রি সকলের রক্ষা করে এবং যাহা বিদ্যুতের স্বরূপে সর্বত্র ব্যাপক সেই অগ্নি সূর্য্যাদির কারণ এই তথ্য তুমি নিশ্চয়পূর্বক জানিবে ॥ ২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - নক্তো॒ষাসা॒ সম॑নসা॒ বিরূ॑পে ধা॒পয়ে॑তে॒ শিশু॒মেকং॑ꣳ সমী॒চী । দ্যাবা॒ক্ষামা॑ রু॒ক্মোऽঅ॒ন্তর্বিভা॑তি দে॒বাऽঅ॒গ্নিং ধা॑রয়ন্ দ্রবিণো॒দাঃ ॥ ২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - নক্তোষাসেত্যস্য কুৎস ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । আর্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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