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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 26
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भुरिगार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    अ॒यमि॒ह प्र॑थ॒मो धा॑यि धा॒तृभि॒र्होता॒ यजि॑ष्ठोऽअध्व॒रेष्वीड्यः॑। यमप्न॑वानो॒ भृग॑वो विरुरु॒चुर्वने॑षु चि॒त्रं वि॒भ्वं वि॒शेवि॑शे॥२६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम्। इ॒ह। प्र॒थ॒मः। धा॒यि॒। धा॒तृभि॒रिति॑ धा॒तृऽभिः॑। होता॑। यजि॑ष्ठः। अ॒ध्व॒रेषु॑। ईड्यः॑। यम्। अप्न॑वानः। भृग॑वः। वि॒रु॒रु॒चुरिति॑ विऽरु॒रु॒चुः। वने॑षु। चि॒त्रम्। वि॒भ्व᳖मिति॑ वि॒ऽभ्व᳖म्। वि॒शेवि॑श॒ इति॑ वि॒शेऽवि॑शे ॥२६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयमिह प्रथमो धायि धातृभिर्हाता यजिष्ठो अध्वरेष्वीड्यः । यमप्नवानो भृगवो विरुरुचुर्वनेषु चित्रं विभ्वँविशेविशे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अयम्। इह। प्रथमः। धायि। धातृभिरिति धातृऽभिः। होता। यजिष्ठः। अध्वरेषु। ईड्यः। यम्। अप्नवानः। भृगवः। विरुरुचुरिति विऽरुरुचुः। वनेषु। चित्रम्। विभ्वमिति विऽभ्वम्। विशेविश इति विशेऽविशे॥२६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 26
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–যে (ইহ) এই জগতে (অধ্বরেষু) রক্ষার যোগ্য ব্যবহারে (ইড্যঃ) অনুসন্ধান করিবার যোগ্য (য়জিষ্ঠঃ) অতিশয় করিয়া যজ্ঞের সাধক (হোতা) ঘৃতাদির গ্রহণকর্ত্তা (প্রথমঃ) সর্বত্র বিস্তৃত (অয়ম্) এই প্রত্যক্ষ অগ্নি (ধাতৃভিঃ) ধারণশীল পুরুষ সকল (ধায়ি) ধারণ করিয়াছে (য়ম্) যাহাকে (বনেষু) কিরণগুলিতে (চিত্রম্) আশ্চর্য্যরূপে (বিভ্বম্) ব্যাপক অগ্নিকে (বিশেবিশে) সমস্ত প্রজার জন্য (অপ্নবান্) রূপবান্ (ভুগবঃ) পূর্ণজ্ঞানী (বিরুরুচুঃ) বিশেষ করিয়া প্রকাশিত করেন, সেই অগ্নিকে সকল মনুষ্য স্বীকার করুক ॥ ২৬ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–বিদ্বান্গণ অগ্নিবিদ্যাকে স্বয়ং ধারণ করিয়া অন্যদেরকে শিখাইবেন ॥ ২৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - অ॒য়মি॒হ প্র॑থ॒মো ধা॑য়ি ধা॒তৃভি॒র্হোতা॒ য়জি॑ষ্ঠোऽঅধ্ব॒রেষ্বীড্যঃ॑ ।
    য়মপ্ন॑বানো॒ ভৃগ॑বো বিরুরু॒চুর্বনে॑ষু চি॒ত্রং বি॒ভ্বং᳖ বি॒শেবি॑শে ॥ ২৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - অয়মিহেত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ভুরিগার্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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