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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 62
    ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    प्रोथ॒दश्वो॒ न यव॑सेऽवि॒ष्यन्य॒दा म॒हः सं॒वर॑णा॒द्व्यस्था॑त्। आद॑स्य॒ वातो॒ऽअनु॑ वाति शो॒चिरध॑ स्म ते॒ व्रज॑नं कृ॒ष्णम॑स्ति॥६२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रोथ॑त्। अश्वः॑। न। यव॑से। अ॒वि॒ष्यन्। य॒दा। म॒हः। सं॒वर॑णा॒दिति॑ स॒म्ऽवर॑णात्। वि। अस्था॑त्। आत्। अ॒स्य॒। वातः॑। अनु॑। वा॒ति॒। शो॒चिः। अध॑। स्म॒। ते॒। व्रज॑नम्। कृ॒ष्णम्। अ॒स्ति॒ ॥६२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रोथदश्वो न यवसेविष्यन्यदा महः सँवरणाद्व्यस्थात् । आदस्य वातोऽअनु वाति शोचिरध स्म ते व्रजनङ्कृष्णमस्ति ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्रोथत्। अश्वः। न। यवसे। अविष्यन्। यदा। महः। संवरणादिति सम्ऽवरणात्। वि। अस्थात्। आत्। अस्य। वातः। अनु। वाति। शोचिः। अध। स्म। ते। व्रजनम्। कृष्णम्। अस्ति॥६२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 62
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে রাজন্! আপনি (য়বসে) ভূষি আদির জন্য (অশ্বঃ) অশ্বের (ন) সমান প্রজাদিগকে (প্রোথৎ) সমর্থ করুন । (য়দা) যখন (মহঃ) বৃহৎ (সংবরণাৎ) আচ্ছাদন দ্বারা (অবিষ্যন্) রক্ষাদি করিতে থাকিয়া (ব্যস্থাৎ) স্থিত হইবেন (আৎ) পুনঃ (অস্য) এই (তে) আপনার (ব্রজনম্) গমনকারী তথা (কৃষ্ণম্) আকর্ষণকারী (শোচিঃ) প্রকাশ (অস্তি) আছে (অধ) ইহার পশ্চাৎ (স্ম)ই আপনার (বাতঃ) গমনকারী ভৃত্য (অনু, বাতি) পিছনে অনুসরণ করে ॥ ৬২ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । যেমন রক্ষা করিলে অশ্ব পুষ্ট হইয়া কার্য্য করিতে সক্ষম হয় সেইরূপ ন্যায়পূর্বক রক্ষিত প্রজা সন্তুষ্ট হইয়া রাজ্যকে বৃদ্ধি করাইতে থাকে ॥ ৬২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - প্রোথ॒দশ্বো॒ ন য়ব॑সেऽবি॒ষ্যন্য॒দা ম॒হঃ সং॒বর॑ণা॒দ্ব্যস্থা॑ৎ ।
    আদ॑স্য॒ বাতো॒ऽঅনু॑ বাতি শো॒চিরধ॑ স্ম তে॒ ব্রজ॑নং কৃ॒ষ্ণম॑স্তি ॥ ৬২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - প্রোথদশ্ব ইত্যস্য বসিষ্ঠ ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । বিরাট্ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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