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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 24
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - शक्वरी स्वरः - धैवतः
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    नमः॑ स॒भाभ्यः॑ स॒भाप॑तिभ्यश्च वो॒ नमो॒ नमोऽश्वे॒भ्योऽश्व॑पतिभ्यश्च वो॒ नमो॒ नम॑ऽआव्या॒धिनी॑भ्यो वि॒विध्य॑न्तीभ्यश्च वो॒ नमो॒ नम॒ऽउग॑णाभ्यस्तृꣳह॒तीभ्य॑श्च वो॒ नमः॑॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। स॒भाभ्यः॑। स॒भाप॑तिभ्य॒ इति॑ स॒भाप॑तिऽभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। अश्वे॑भ्यः। अश्व॑पतिभ्य॒ इत्यश्व॑पतिऽभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। आ॒व्या॒धिनी॑भ्य॒ इत्या॑ऽव्या॒धिनी॑भ्यः। वि॒विध्य॑न्तीभ्य॒ इति॑ वि॒ऽविध्य॑न्तीभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। उग॑णाभ्यः। तृ॒ꣳह॒तीभ्यः॑। च॒। वः॒। नमः॑ ॥२४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमः सभाभ्यः सभापतिभ्यश्च वो नमो नमोश्वेभ्यो श्वपतिभ्यश्च वो नमो नमऽआव्याधिनीभ्यो विविध्यन्तीभ्यश्च वो नमो नमऽउगणाभ्यस्तृँहतीभ्यश्च वो नमः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। सभाभ्यः। सभापतिभ्य इति सभापतिऽभ्यः। च। वः। नमः। नमः। अश्वेभ्यः। अश्वपतिभ्य इत्यश्वपतिऽभ्यः। च। वः। नमः। नमः। आव्याधिनीभ्य इत्याऽव्याधिनीभ्यः। विविध्यन्तीभ्य इति विऽविध्यन्तीभ्यः। च। वः। नमः। नमः। उगणाभ्यः। तृꣳहतीभ्यः। च। वः। नमः॥२४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 24
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–মনুষ্যদিগকে সকলের প্রতি এমন বলা দরকার যে, আমরা (সভাভ্যঃ) ন্যায়াদির প্রকাশযুক্ত নারীদিগের (নমঃ) সৎকার (চ) এবং (সভাপতিভ্যঃ) সভাগুলির রক্ষক (বঃ) তোমরা রাজাদের (নমঃ) সৎকার করিব, (অশ্বেভ্যঃ) অশ্বগুলিকে (নমঃ) অন্ন (চ) এবং (অশ্বপতিভ্যঃ) অশ্বের রক্ষক (বঃ) তোমাকে (নমঃ) অন্ন তথা (আব্যাধিনীভ্যঃ) শত্রুদিগের সেনাকে নিধনকারী স্বীয় সেনার জন্য (নমঃ) অন্ন দিব (চ) এবং (বিবিধ্যন্তীভ্যঃ) শত্রুদিগের বীরসমূহকে মারিয়া (বঃ) তোমা নারীদের (নমঃ) সৎকার করিব (উগণাভ্যঃ) বিবিধ তর্ক যুক্তা নারীদিগকে (নমঃ) অন্ন (চ) এবং (তৃংহতীভ্যঃ) যুদ্ধে নিধনকারী (বঃ) তোমা নারীদিগের জন্য (নমঃ) অন্ন দিব তথা যথাযোগ্য সৎকার করিব ॥ ২৪ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে, সভা এবং সভাপতিসকল দ্বারাই রাজ্যের ব্যবস্থা করিবে । কখনও এক রাজার অধীনতায় স্থির হইবে না কেননা এক পুরুষ হইতে বহুর হিতাহিত বিচার কখনও হইতে পারে না এইজন্য ॥ ২৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - নমঃ॑ স॒ভাভ্যঃ॑ স॒ভাপ॑তিভ্যশ্চ বো॒ নমো॒ নমোऽশ্বে॒ভ্যোऽশ্ব॑পতিভ্যশ্চ বো॒ নমো॒ নম॑ऽআব্যা॒ধিনী॑ভ্যো বি॒বিধ্য॑ন্তীভ্যশ্চ বো॒ নমো॒ নম॒ऽউগ॑ণাভ্যস্তৃꣳহ॒তীভ্য॑শ্চ বো॒ নমঃ॑ ॥ ২৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - নমঃ সভাভ্য ইত্যস্য কুৎস ঋষিঃ । রুদ্রা দেবতাঃ । শক্বরী ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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