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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 43
    ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्वा देवा ऋषयः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः
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    नमः॑ सिक॒त्याय च प्रवा॒ह्याय च॒ नमः॑ किꣳशि॒लाय॑ च क्षय॒णाय॑ च॒ नमः॑ कप॒र्दिने॑ च पुल॒स्तये॑ च॒ नम॑ऽइरि॒ण्याय च प्र॒पथ्याय च॥४३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। सि॒क॒त्या᳖य। च॒। प्र॒वा॒ह्या᳖येति॑ प्रऽवा॒ह्या᳖य। च॒। नमः॑। कि॒ꣳशि॒लाय॑। च॒। क्ष॒य॒णाय॑। च॒। नमः॑। क॒प॒र्दिने॑। च॒। पु॒ल॒स्तये॑। च॒। नमः॑। इ॒रि॒ण्या᳖य। च॒। प्र॒प॒थ्या᳖येति॑ प्रऽप॒थ्या᳖य। च॒ ॥४३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमः सिकत्याय च प्रवाह्याय च नमः किँशिलाय च क्षयणाय च नमः कपर्दिने च पुलस्तये च नम इरिण्याय च प्रपथ्याय च नमः सिकत्याय ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। सिकत्याय। च। प्रवाह्यायेति प्रऽवाह्याय। च। नमः। किꣳशिलाय। च। क्षयणाय। च। नमः। कपर्दिने। च। पुलस्तये। च। नमः। इरिण्याय। च। प्रपथ्यायेति प्रऽपथ्याय। च॥४३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 43
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–যে মনুষ্য (সিকত্যায়) বালি হইতে বস্তু বাহির করিতে দক্ষ (চ) এবং (প্রবাহ্যায়) বলদাদি চালনা করিতে প্রবীণকে (চ)(নমঃ) অন্ন, (কিংশিলায়) শিলাবৃত্তি কারী (চ) এবং (ক্ষয়ণায়) নিবাস স্থলে বসবাসকারীদিগের (চ)(নমঃ) অন্ন, (কপর্দিনে) জটাধারী (চ) এবং (পুলস্তয়ে) বড় বড় শরীরকে নিক্ষিপ্তকারীদেরকে (চ)(নমঃ) অন্ন দিবে, (ইরিণ্যায়) অনুর্বর ভূমি হইতে অত্যন্ত উপকার গ্রহণকারী (চ) এবং (প্রপথ্যায়) উত্তম ধর্মের মার্গে প্রবীণ পুরুষের (চ)(নমঃ) সৎকার করিবে, তাহারা সকলের প্রিয় হইবে ॥ ৪৩ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে, ভূগর্ভ বিদ্যানুসারে বালি, মাটি ইত্যাদি হইতে সুবর্ণাদি ধাতুগুলিকে বাহির করিয়া বহু ঐশ্বর্য্য বৃদ্ধি করিয়া অনাথদিগের পালন করিবে ॥ ৪৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - নমঃ॑ সিক॒ত্যা᳖য় চ প্রবা॒হ্যা᳖য় চ॒ নমঃ॑ কিꣳশি॒লায়॑ চ ক্ষয়॒ণায়॑ চ॒ নমঃ॑ কপ॒র্দিনে॑ চ পুল॒স্তয়ে॑ চ॒ নম॑ऽইরি॒ণ্যা᳖য় চ প্র॒পথ্যা᳖য় চ ॥ ৪৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - নমঃ সিকত্যায়েত্যস্য পরমেষ্ঠী প্রজাপতির্বা দেবা ঋষয়ঃ । রুদ্রা দেবতাঃ ।
    জগতী ছন্দঃ । নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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