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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 52
    ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्वा देवा ऋषयः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - आर्ष्युनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    विकि॑रिद्र॒ विलो॑हित॒ नम॑स्तेऽअस्तु भगवः। यास्ते॑ स॒हस्र॑ꣳ हे॒तयो॒ऽन्य॑म॒स्मन्नि व॑पन्तु॒ ताः॥५२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विकि॑रि॒द्रेति॒ विऽकि॑रिद्र। विलो॑हि॒तेति॒ विऽलो॑हित। नमः॑। ते॒। अ॒स्तु॒। भ॒ग॒व॒ इति॑ भगऽवः। याः। ते॒। स॒हस्र॑म्। हे॒तयः॑। अन्य॑म्। अ॒स्मत्। नि। व॒प॒न्तु॒। ताः ॥५२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विकिरिद्र विलोहित नमस्तेऽअस्तु भगवः । यास्ते सहस्रँ हेतयोन्यमस्मन्निवपन्तु ताः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विकिरिद्रेति विऽकिरिद्र। विलोहितेति विऽलोहित। नमः। ते। अस्तु। भगव इति भगऽवः। याः। ते। सहस्रम्। हेतयः। अन्यम्। अस्मत्। नि। वपन्तु। ताः॥५२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 52
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে (বিকিরিদ্র) বিশেষ করিয়া শূকর সদৃশ শয়নকারী অথবা উত্তম শূকরের নিন্দাকারী (বিলোহিত) বিবিধ পদার্থ সকলকে আরূঢ় (ভগবঃ) ঐশ্বর্য্য যুক্ত সভাপতে রাজন্! (তে) আপনাকে (নমঃ) সৎকার প্রাপ্ত (অস্ত) হউক যাহাতে (তে) আপনার (য়াঃ) যে (সহস্রম্) অসংখ্য প্রকারের (হেতয়ঃ) উন্নতি বা বজ্রাদি শস্ত্র আছে, (তাঃ) উহারা (অস্মৎ) আমাদিগের হইতে (অন্যম্) ভিন্ন অন্যান্য শত্রুকে (নিবপন্তু) নিরন্তর ছেদন করুক ॥ ৫২ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–প্রজার লোকেরা রাজপুরুষদিগকে এমন বলিবে যে, আপনাদের যে উন্নতি এবং অস্ত্র-শস্ত্র উহা আমাদিগকে সুখে স্থির করিবে এবং ইতর আমাদের শত্রুদিগকে নিবারণ করিবে ॥ ৫২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - বিকি॑রিদ্র॒ বিলো॑হিত॒ নম॑স্তেऽঅস্তু ভগবঃ ।
    য়াস্তে॑ স॒হস্র॑ꣳ হে॒তয়ো॒ऽন্য॑ম॒স্মন্নি ব॑পন্তু॒ তাঃ ॥ ৫২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - বিকিরিদ্রেত্যস্য পরমেষ্ঠী প্রজাপতির্বা দেবা ঋষয়ঃ । রুদ্রা দেবতাঃ ।
    আর্ষ্যনুষ্টুপ্ ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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