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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 51
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - पितरो देवताः छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    ये नः॒ पूर्वे॑ पि॒तरः॑ सो॒म्यासो॑ऽनूहि॒रे सो॑मपी॒थं वसि॑ष्ठाः। तेभि॑र्य॒मः स॑ꣳररा॒णो ह॒वीष्यु॒शन्नु॒शद्भिः॑ प्रतिका॒म॑मत्तु॥५१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये। नः॒। पूर्वे॑। पि॒तरः॑। सो॒म्यासः॑। अ॒नू॒हि॒र इत्य॑नुऽऊहि॒रे। सो॒म॒पी॒थमिति॑। सोमऽपी॒थम्। वसि॑ष्ठाः। तेभिः॑। य॒मः। स॒ꣳर॒रा॒ण इति॑ सम्ऽररा॒णः। ह॒वीषि॑। उ॒शन्। उ॒शद्भिरित्यु॒शत्ऽभिः॑। प्र॒ति॒का॒ममिति॑ प्रतिऽका॒मम्। अ॒त्तु॒ ॥५१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो नूहिरे सोमपीथँ वसिष्ठाः । तेभिर्यमः सँरराणो हवीँष्युशन्नुशद्भिः प्रतिकाममत्तु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ये। नः। पूर्वे। पितरः। सोम्यासः। अनूहिर इत्यनुऽऊहिरे। सोमपीथमिति। सोमऽपीथम्। वसिष्ठाः। तेभिः। यमः। सꣳरराण इति सम्ऽरराणः। हवीषि। उशन्। उशद्भिरित्युशत्ऽभिः। प्रतिकाममिति प्रतिऽकामम्। अत्तु॥५१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 51
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–(য়ে) যাহারা (নঃ) আমাদের (সোম্যাসঃ) শান্ত্যাদি গুণগুলির যোগ দ্বারা যোগ্য (বসিষ্ঠাঃ) অত্যন্ত ধনী (পূর্বে) পূর্বপুরুষ (পিতরঃ) পালনকারী জ্ঞানী পিতাদি (সোমপীথম্) সোমপানকে (অনূহিরে) প্রাপ্ত হয় বা প্রাপ্ত করায় (তেভিঃ) সেই সব (উশদ্ভিঃ) আমাদের পালনের কামনাকারী পিতরদের সহ (হবীংষি) দেওয়ার-নেওয়ার যোগ্য পদার্থদিগের (উশন্) কামনাকারী (সংররাণঃ) উত্তম প্রকার সুখদাতা (য়মঃ) ন্যায় ও যোগযুক্ত সন্তান (প্রতিকামম্) প্রত্যেক কর্মকে ভোগ করুক ॥ ৫১ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–পিতাদি পুত্রদিগের সহ এবং পুত্র পিতাদি সহ সব সুখ দুঃখ ভোগ করুক এবং সর্বদা সুখের বৃদ্ধি দুঃখের নাশ করিতে থাকে ॥ ৫১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - য়ে নঃ॒ পূর্বে॑ পি॒তরঃ॑ সো॒ম্যাসো॑ऽনূহি॒রে সো॑মপী॒থং বসি॑ষ্ঠাঃ ।
    তেভি॑র্য়॒মঃ স॑ꣳররা॒ণো হ॒বীᳬंষ্যু॒শন্নু॒শদ্ভিঃ॑ প্রতিকা॒মম॑ত্তু ॥ ৫১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - য়ে ন ইত্যস্য শঙ্খ ঋষিঃ । পিতরো দেবতাঃ । ভুরিক্পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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