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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 22
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    अ॒पोऽअ॒द्यान्व॑चारिष॒ꣳ रसे॑न॒ सम॑सृक्ष्महि। पय॑स्वाग्न॒ऽआग॑मं॒ तं मा॒ सꣳसृ॑ज॒ वर्च॑सा प्र॒जया॑ च॒ धने॑न च॥२२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पः। अ॒द्य। अनु॑। अ॒चा॒रि॒ष॒म्। रसे॑न। सम्। अ॒सृ॒क्ष्म॒हि॒। पय॑स्वान्। अ॒ग्ने॒। आ। अ॒ग॒म॒म्। तम्। मा॒। सम्। सृ॒ज॒। वर्च॑सा। प्र॒जयेति॑ प्र॒जया॑। च॒। धने॑न। च॒ ॥२२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपोऽअद्यान्वचारिषँ रसेन समसृक्ष्महि । पयस्वानग्न आगमन्तं मा सँ सृज वर्चसा प्रजया च धनेन च ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अपः। अद्य। अनु। अचारिषम्। रसेन। सम्। असृक्ष्महि। पयस्वान्। अग्ने। आ। अगमम्। तम्। मा। सम्। सृज। वर्चसा। प्रजयेति प्रजया। च। धनेन। च॥२२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 22
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে (অগ্নে) অগ্নির সমান বিদ্বান্ ! যে (পয়স্বান) প্রশংসিত জলের বিদ্যাযুক্ত আমি তোমাকে (আ, অগমম্) প্রাপ্ত হই অথবা (অদ্য) আজ (রসেন) মধুরাদি রস দ্বারা যুক্ত (অপ) জলকে (অন্বচারিষম্) আজ আনুকূল্য সহ পান করি (তম্) সেই (মা) আমাকে (বর্চসা) সাঙ্গোপাঙ্গ বেদাধ্যয়ন (প্রজয়া) প্রজা (চ) এবং (অনেন) ধন দ্বারা (চ)(সং, সৃজ) সম্যক্ সংযুক্ত কর যাহাতে এই লোকগুলি ও আমি সকলে আমরা সুখের জন্য (সমমৃক্ষ্মহি) সংযুক্ত হই ॥ ২২ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- যদি বিদ্বান্গণ পাঠ ও উপদেশের দ্বারা অন্য লোকদেরকেও বিদ্বান্ করে তাহা হইলে তাহারাও নিত্য অধিক বিদ্যা সম্পন্ন হয় ॥ ২২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - অ॒পোऽঅ॒দ্যান্ব॑চারিষ॒ꣳ রসে॑ন॒ সম॑সৃক্ষ্মহি ।
    পয়॑স্বানগ্ন॒ऽআऽগ॑মং॒ তং মা॒ সꣳ সৃ॑জ॒ বর্চ॑সা প্র॒জয়া॑ চ॒ ধনে॑ন চ ॥ ২২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - অপ ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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