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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 40
    ऋषिः - आङ्गिरस ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - भुरिक् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    इन्द्रं॒ दुरः॑ कव॒ष्यो धाव॑माना॒ वृषा॑णं यन्तु॒ जन॑यः सु॒पत्नीः॑। द्वारो॑ दे॒वीर॒भितो॒ विश्र॑यन्ता सु॒वीरा॑ वी॒रं प्रथ॑माना॒ महो॑भिः॥४०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म्। दुरः॑। क॒व॒ष्यः᳖। धाव॑मानाः। वृषा॑णम्। य॒न्तु॒। जन॑यः। सु॒पत्नी॒रिति॑ सु॒ऽपत्नीः॑। द्वारः॑। दे॒वीः। अ॒भितः॑। वि। श्र॒य॒न्ता॒म्। सु॒वीरा॒ इति॑ सु॒ऽवीराः॑। वी॒रम्। प्रथ॑मानाः। महो॑भि॒रिति॒ महः॑ऽभिः ॥४० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रम्दुरः कवष्यो धावमाना वृषाणँयन्तु जनयः सुपत्नीः । द्वारो देवीरभितो विश्रयन्ताँ सुवीरा वीरम्प्रथमाना महोभिः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम्। दुरः। कवष्यः। धावमानाः। वृषाणम्। यन्तु। जनयः। सुपत्नीरिति सुऽपत्नीः। द्वारः। देवीः। अभितः। वि। श्रयन्ताम्। सुवीरा इति सुऽवीराः। वीरम्। प्रथमानाः। महोभिरिति महःऽभिः॥४०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 40
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যেমন (কবষ্যঃ) বলিতে চতুর (বৃষাণম্) অতি বীর্য্যবান্ (ইন্দ্রম্) পরমেশ্বর্য্য সম্পন্ন (বীরম্) বীর পুরুষের প্রতি (ধাবমানাঃ) ধাবমান (জনয়ঃ) সন্তানদিগের জন্মদায়িত্রী স্ত্রীগণ (দুরঃ) দ্বারগুলিকে (য়ন্তু) প্রাপ্ত হউক বা যেমন (প্রথমানাঃ) প্রখ্যাত (সুবীরাঃ) অত্যুত্তম বীর পুরুষ (মহোভিঃ) উত্তম পূজিত গুণে যুক্ত (দ্বারঃ) দ্বারতুল্য বর্ত্তমান (দেবীঃ) বিদ্যাদি গুণদ্বারা প্রকাশমান (সুপত্নীঃ) উত্তম স্ত্রীগণকে (অভিতঃ) সব দিক দিয়া (বি, শ্রয়ন্তাম্) বিশেষ করিয়া আশ্রয় করিবে সেইরূপ তোমরাও করিতে থাক ॥ ৪০ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যে কুলে বা দেশে পরস্পর প্রীতিপূর্বক স্বয়ংবর বিবাহ করে সেখানে মনুষ্য সর্বদা আনন্দে থাকে ॥ ৪০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - ইন্দ্রং॒ দুরঃ॑ কব॒ষ্যো᳕ ধাব॑মানা॒ বৃষা॑ণং য়ন্তু॒ জন॑য়ঃ সু॒পত্নীঃ॑ ।
    দ্বারো॑ দে॒বীর॒ভিতো॒ বি শ্র॑য়ন্তাᳬं সু॒বীরা॑ বী॒রং প্রথ॑মানা॒ মহো॑ভিঃ ॥ ৪০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ইন্দ্রমিত্যস্যাঙ্গিরস ঋষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । ভুরিক্ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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