Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 41
    ऋषिः - आङ्गिरस ऋषिः देवता - उषासानक्ता देवते छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    2

    उ॒षासा॒नक्ता॑ बृह॒ती बृ॒हन्तं॒ पय॑स्वती सु॒दुघे॒ शूर॒मिन्द्र॑म्। तन्तुं॑ त॒तं पेश॑सा सं॒वय॑न्ती दे॒वानां॑ दे॒वं य॑जतः सुरु॒क्मे॥४१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒षासा॒नक्ता॑। उ॒षसा॒नक्तेत्यु॒षसा॒ऽक्ता॑। बृ॒ह॒तीऽइति॑ बृह॒ती। बृ॒हन्त॑म्। पय॑स्वती॒ऽइति॒ पय॑स्वती। सु॒दुघे॒ऽइति॑ सु॒दुघे॑। शूर॑म्। इन्द्र॑म्। तन्तु॑म्। त॒तम्। पेश॑सा। सं॒वय॑न्ती॒ इति॑ स॒म्ऽवय॑न्ती। दे॒वाना॑म्। दे॒वम्। य॒ज॒तः॒। सु॒रु॒क्मे इति॑ सुऽरु॒क्मे ॥४१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उषासानक्ता बृहती बृहन्तम्पयस्वती सुदुघे शूरमिन्द्रम् । तन्तुन्ततम्पेशसा सँवयन्ती देवानान्देवं यजतः सुरुक्मे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उषासानक्ता। उषसानक्तेत्युषसाऽक्ता। बृहतीऽइति बृहती। बृहन्तम्। पयस्वतीऽइति पयस्वती। सुदुघेऽइति सुदुघे। शूरम्। इन्द्रम्। तन्तुम्। ततम्। पेशसा। संवयन्ती इति सम्ऽवयन्ती। देवानाम्। देवम्। यजतः। सुरुक्मे इति सुऽरुक्मे॥४१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 41
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যেমন (পেশসা) রূপ দ্বারা (সংবয়ন্তী) প্রাপ্তিকারী (পয়স্বতী) রাত্রির অন্ধকারের সঙ্গে যুক্ত (সুদুঘে) সুষ্টু প্রকার পূরক (বৃহতী) বর্দ্ধমান (সুরুক্মে) উত্তম দীপ্যমান (উষাসানক্তা) রাত্রি ও দিন (ততম্) বিস্তারযুক্ত (দেবানাম্) পৃথিব্যাদিকের (দেবম্) প্রকাশক (বৃহন্তম্) বৃহৎ (ইন্দ্রম্) সূর্য্যমণ্ডলকে (য়জতঃ) সঙ্গ করে সেইরূপ (তন্তুম্) বিস্তারকারী (শূরম্) শূরবীর পুরুষকে তোমরা প্রাপ্ত হও ॥ ৪১ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন সমস্ত লোক সর্বাপেক্ষা বৃহৎ সূর্য্যলোককে আশ্রয় করে সেইরূপ শ্রেষ্ঠ পুরুষের আশ্রয় সব লোকেরা করুক ॥ ৪১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - উ॒ষাসা॒নক্তা॑ বৃহ॒তী বৃ॒হন্তং॒ পয়॑স্বতী সু॒দুঘে॒ শূর॒মিন্দ্র॑ম্ ।
    তন্তুং॑ ত॒তং পেশ॑সা সং॒বয়॑ন্তী দে॒বানাং॑ দে॒বং য়॑জতঃ সুরু॒ক্মে ॥ ৪১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - উষাসানক্তেত্যস্যাঙ্গিরস ঋষিঃ । উষাসানক্তা দেবতে । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top