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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 51
    ऋषिः - गर्ग ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    इन्द्रः॑ सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒२ऽअवो॑भिः सुमृडी॒को भ॑वतु वि॒श्ववे॑दाः। बाध॑तां॒ द्वेषो॒ऽअभ॑यं कृणोतु सु॒वीर्य॑स्य॒ पत॑यः स्याम॥५१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रः॑। सु॒त्रामेति॑ सु॒ऽत्रामा॑। स्ववा॒निति॒ स्वऽवा॑न्। अवो॑भि॒रित्यवः॑ऽभिः। सु॒मृ॒डी॒क इति॑ सुऽमृडी॒कः। भ॒व॒तु॒। वि॒श्ववे॑दा॒ इति॑ वि॒श्वऽवे॑दाः। बाध॑ताम्। द्वेषः॑। अभ॑यम्। कृ॒णो॒तु॒। सु॒वीर्य॒स्योति॑ सु॒ऽवीर्य॑स्य। पत॑यः। स्या॒म॒ ॥५१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रः सुत्रामा स्ववाँऽअवोभिः सुमृडीको भवतु विश्ववेदाः । बाधतान्द्वेषो अभयङ्कृणोतु सुवीर्यस्य पतयः स्याम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रः। सुत्रामेति सुऽत्रामा। स्ववानिति स्वऽवान्। अवोभिरित्यवःऽभिः। सुमृडीक इति सुऽमृडीकः। भवतु। विश्ववेदा इति विश्वऽवेदाः। बाधताम्। द्वेषः। अभयम्। कृणोतु। सुवीर्यस्योति सुऽवीर्यस्य। पतयः। स्याम॥५१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 51
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- যে (সুত্রামা) উত্তম প্রকার রক্ষাকর্ত্তা (স্ববান্) স্বকীয় বহু উত্তম লোকদের সঙ্গে যুক্ত (বিশ্ববেদাঃ) সমগ্র ধনবান্ (সুমৃডীকঃ) উত্তম সুখকারী এবং (ইন্দ্রঃ) ঐশ্বর্য্যের বৃদ্ধিকারী রাজা (অবোভিঃ) ন্যায়পূর্বক রক্ষণাদি দ্বারা প্রজার রক্ষা করে সে (দ্বেষঃ) শত্রুদিগকে (বাধতাম্) দূরে সরাইয়া দিক (অভয়ম্) সকলকে ভয়রহিত (কৃণোতু) করুক এবং স্বয়ংও তদ্রূপই (ভবতু) হউক যাহাতে আমরা (সুবীর্য়স্য) উত্তম পরাক্রমের (পতয়ঃ) পালনকর্ত্তা (স্যাম) হই ॥ ৫১ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- যে বিদ্যা বিনয় সহ যুক্ত হইয়া রাজপুরুষ প্রজার রক্ষাকারী না হয়, তাহা হইলে সুখের বৃদ্ধিও হইবে না ॥ ৫১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - ইন্দ্রঃ॑ সু॒ত্রামা॒ স্ববাঁ॒২ऽঅবো॑ভিঃ সুমৃডী॒কো ভ॑বতু বি॒শ্ববে॑দাঃ ।
    বাধ॑তাং॒ দ্বেষো॒ऽঅভ॑য়ং কৃণোতু সু॒বীর্য়॑স্য॒ পত॑য়ঃ স্যাম ॥ ৫১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ইন্দ্র ইত্যস্য গর্গ ঋষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । ভুরিক্ পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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