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  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 19
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - वायुर्देवता छन्दः - त्रिपाद्गायत्री स्वरः - षड्जः
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    उ॒क्ताः स॑ञ्च॒राऽएताः॑ शुनासी॒रीयाः॑ श्वे॒ता वा॑य॒व्याः श्वे॒ताः सौ॒र्याः॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒क्ताः। स॒ञ्च॒रा इति॑ सम्ऽच॒राः। एताः॑। शु॒ना॒सी॒रीयाः॑। श्वे॒ताः। वा॒य॒व्याः᳖। श्वे॒ताः। सौ॒र्य्याः ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उक्ताः सङ्चराऽएता शुनासीरीयाः श्वेता वायव्याः श्वेताः सौर्याः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उक्ताः। सञ्चरा इति सम्ऽचराः। एताः। शुनासीरीयाः। श्वेताः। वायव्याः। श्वेताः। सौर्य्याः॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 19
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! (এতাঃ) এই সব (শুনাসীরীয়াঃ) শুনাসীর দেবতাযুক্ত অর্থাৎ কৃষির সিদ্ধিকারী (সঞ্চরাঃ) যাতায়াতকারী (বায়ব্যাঃ) পবনের সমান দিব্যগুণযুক্ত (শ্বেতাঃ) শ্বেত বর্ণযুক্ত বা (সৌর্য়্যাঃ) সূর্য্য সমান প্রকাশমান (শ্বেতাঃ) শ্বেত বর্ণের পশু (উক্তাঃ) উক্ত হইয়াছে, তাহাদেরকে নিজ কার্য্যে তুমি উত্তম প্রকার নিরন্তর নিযুক্ত কর ॥ ১ঌ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–যাহাকে যে পশুর দেবতা বলা হইয়াছে উহা সেই পশুর গুণ গ্রহণ করা উচিত ॥ ১ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - উ॒ক্তাঃ স॑ঞ্চ॒রাऽএতাঃ॑ শুনাসী॒রীয়াঃ॑ শ্বে॒তা বা॑য়॒ব্যাঃ᳖ শ্বে॒তাঃ সৌ॒র্য়াঃ ॥ ১ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - উক্তাঃ সঞ্চরা ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । বায়ুর্দেবতা । ত্রিপাদ্গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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