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  • यजुर्वेद - अध्याय 31/ मन्त्र 21
    ऋषिः - उत्तरनारायण ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    रु॒चं ब्रा॒ह्मं ज॒नय॑न्तो दे॒वाऽअग्रे॒ तद॑ब्रुवन्।यस्त्वै॒वं ब्रा॑ह्म॒णो वि॒द्यात् तस्य॑ दे॒वाऽअ॑स॒न् वशे॑॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रु॒चम्। ब्रा॒ह्मम्। ज॒नय॑न्तः। दे॒वाः। अग्रे॑। तत्। अ॒ब्रु॒व॒न् ॥ यः। त्वा॒। ए॒वम्। ब्रा॒ह्म॒णः। वि॒द्यात्। तस्य॑। दे॒वाः। अ॒स॒न्। वशे॑ ॥२१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रुचम्ब्राह्म्यञ्जनयन्तो देवाऽअग्रे तदब्रुवन् । यस्त्वैवम्ब्राह्मणो विद्यात्तस्य देवा असन्वशे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    रुचम्। ब्राह्मम्। जनयन्तः। देवाः। अग्रे। तत्। अब्रुवन्॥ यः। त्वा। एवम्। ब्राह्मणः। विद्यात्। तस्य। देवाः। असन्। वशे॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 31; मन्त्र » 21
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে ব্রহ্মনিষ্ঠ পুরুষ ! যিনি (রুচম্) রুচিকারক (ব্রাহ্মম্) ব্রহ্মের উপাসক (ত্বা) আপনাকে (জনয়ন্তঃ) সম্পাদন করিয়া (দেবাঃ) বিদ্বান্গণ (অগ্রে) প্রথমে (তৎ) ব্রহ্ম, জীব ও প্রকৃতির স্বরূপকে (অব্রুবন্) বলিবেন (য়ঃ) যে (ব্রাহ্মণঃ) ব্রাহ্মণ (এবম্) এইরকম (বিদ্যাৎ) জানিবেন (তস্য) তাহার সেই সব (দেবাঃ) বিদ্বান্ সকল (বশে) বশে (অসন্) হইবেন ॥ ২১ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই বিদ্বান্দিগের প্রথম কর্ত্তব্য, বেদ, ঈশ্বর ও ধর্মাদিতে রুচি, উপদেশ, অধ্যাপন, ধর্মাত্মতা, জিতেন্দ্রিয়তা, শরীর ও আত্মার বল বৃদ্ধি করা । এমন করিলেই সকল উত্তম গুণ ও ভোগ প্রাপ্ত হইতে পারে ॥ ২১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - রু॒চং ব্রা॒হ্মং জ॒নয়॑ন্তো দে॒বাऽঅগ্রে॒ তদ॑ব্রুবন্ ।
    য়স্ত্বৈ॒বং ব্রা॑হ্ম॒ণো বি॒দ্যাৎ তস্য॑ দে॒বাऽঅ॑স॒ন্ বশে॑ ॥ ২১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - রুচিমিত্যস্যোত্তরনারায়ণ ঋষিঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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