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  • यजुर्वेद - अध्याय 38/ मन्त्र 24
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    उद्व॒यन्तम॑स॒स्परि॒ स्वः पश्य॑न्त॒ऽ उत्त॑रम्।दे॒वं दे॑व॒त्रा सूर्य॒मग॑न्म॒ ज्योति॑रुत्त॒मम्॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत्। व॒यम्। तम॑सः। परि॑। स्व᳖रिति॒ स्वः᳖। पश्य॑न्तः। उत्त॑र॒मित्यु॑त्ऽत॑रम् ॥ दे॒वम्। दे॒व॒त्रेति॑ देव॒ऽत्रा। सूर्य्य॑म्। अग॑न्म। ज्योतिः॑। उ॒त्त॒ममित्यु॑त्ऽत॒मम् ॥२४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उद्वयन्तमसस्परि स्वः पश्यन्तऽउत्तरम् । देवन्देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत्। वयम्। तमसः। परि। स्वरिति स्वः। पश्यन्तः। उत्तरमित्युत्ऽतरम्॥ देवम्। देवत्रेति देवऽत्रा। सूर्य्यम्। अगन्म। ज्योतिः। उत्तममित्युत्ऽतमम्॥२४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 38; मन्त्र » 24
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যেমন (বয়ম্) আমরা (তমসঃ) অন্ধকার হইতে পৃথক্ বর্ত্তমান (উত্তরম্) সকল পদার্থের উত্তর ভাগে বর্ত্তমান (দেবতা) দিব্য উত্তম পদার্থ সকলে (দেবম্) উত্তম গুণ-কর্ম-স্বভাবযুক্ত (উত্তমম্) সর্বাপেক্ষা শ্রেষ্ঠ (জ্যোতিঃ) সকলের প্রকাশক (সূর্য়্যম্) সূর্য্যের তুল্য প্রকাশস্বরূপ ঈশ্বরকে (পশ্যন্তঃ) জ্ঞানদৃষ্টি দ্বারা দেখিয়া (স্বঃ) সুখকে (পরি, উৎ অগন্ম) সব দিক দিয়া উৎকৃষ্টতা সহ প্রাপ্ত হইব, সেইরূপ তোমরাও প্রাপ্ত হও ॥ ২৪ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যে সব মনুষ্য বিদ্যুতাদি বিদ্যাকে প্রাপ্ত হইয়া পরমাত্মাকে সাক্ষাৎ দর্শন করে তাহারা প্রকাশিত নিরন্তর সুখলাভ করে ॥ ২৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - উদ্ব॒য়ন্তম॑স॒স্পরি॒ স্বঃ᳕ পশ্য॑ন্ত॒ऽ উত্ত॑রম্ ।
    দে॒বং দে॑ব॒ত্রা সূর্য়॒মগ॑ন্ম॒ জ্যোতি॑রুত্ত॒মম্ ॥ ২৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - উদ্বয়মিত্যস্য দীর্ঘতমা ঋষিঃ । সবিতা দেবতা । বিরাডনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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