Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 5/ मन्त्र 3
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - आर्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    8

    भव॑तं नः॒ सम॑नसौ॒ सचे॑तसावरे॒पसौ॑। मा य॒ज्ञꣳ हि॑ꣳसिष्टं॒ मा य॒ज्ञप॑तिं जातवेदसौ शि॒वौ भ॑वतम॒द्य नः॑॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भव॑तम्। नः॒। सम॑नसा॒विति॒ सऽम॑नसौ। सचे॑तसा॒विति॒ सऽचे॑तसौ। अ॒रे॒पसौ॑। मा। य॒ज्ञम्। हि॒सि॒ष्ट॒म्। मा। य॒ज्ञप॑ति॒मिति॑ य॒ज्ञऽप॑तिम्। जा॒त॒वे॒द॒सा॒विति॑ जातऽवेदसौ। शि॒वौ। भ॒व॒त॒म्। अ॒द्य। नः॒ ॥३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भवतन्नः समनसौ सचेतसावरेपसौ । मा यज्ञँ हिँसिष्टंम्मा यज्ञपतिञ्जातवेदसौ शिवौ भवतमद्य नः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    भवतम्। नः। समनसाविति सऽमनसौ। सचेतसाविति सऽचेतसौ। अरेपसौ। मा। यज्ञम्। हिसिष्टम्। मा। यज्ञपतिमिति यज्ञऽपतिम्। जातवेदसाविति जातऽवेदसौ। शिवौ। भवतम्। अद्य। नः॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 5; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    পদার্থঃ–(অরেপসৌ) প্রাকৃত মনুষ্যদিগের ভাষণরূপী বচন রহিত (সমনসৌ) তুল্য বিজ্ঞানযুক্ত (সচেতসৌ) তুল্য জ্ঞানজ্ঞাপনযুক্ত (জাতবেদসৌ) বেদ ও উপবিদ্যাগুলিকে সিদ্ধ কৃত পঠন-পাঠন যুক্ত বিদ্বান্ (নঃ) আমাদিগের জন্য উপদেশকারী (ভবতম্) হউন । যাহারা (য়জ্ঞম্) পঠন-পাঠন রূপ যজ্ঞ বা (য়জ্ঞপতিম্) বিদ্যাপ্রদ যজ্ঞ পালনকারী যজমানকে (মা হিংসিষ্টম্) পীড়িত না করেন । তাঁহারা (আদ্য) আজ (নঃ) আমাদিগের জন্য (শিবৌ) মঙ্গলকারী (ভবতম্) হউন ॥ ৩ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে, বিদ্যাপ্রচার হেতু পঠন-পাঠন বা মঙ্গলাচরণ ত্যাগ করিবে না কেননা ইহাই সর্বোত্তম কর্ম ॥ ৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - ভব॑তং নঃ॒ সম॑নসৌ॒ সচে॑তসাবরে॒পসৌ॑ । মা য়॒জ্ঞꣳ হি॑ꣳসিষ্টং॒ মা য়॒জ্ঞপ॑তিং জাতবেদসৌ শি॒বৌ ভ॑বতম॒দ্য নঃ॑ ॥ ৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ভবতং ন ইত্যস্য গোতম ঋষিঃ । য়জ্ঞো দেবতা । আর্ষী পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top