ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 55/ मन्त्र 1
दि॒वश्चि॑दस्य वरि॒मा वि प॑प्रथ॒ इन्द्रं॒ न म॒ह्ना पृ॑थि॒वी च॒न प्रति॑। भी॒मस्तुवि॑ष्माञ्चर्ष॒णिभ्य॑ आत॒पः शिशी॑ते॒ वज्रं॒ तेज॑से॒ न वंस॑गः ॥
स्वर सहित पद पाठदि॒वः । चि॒त् । अ॒स्य॒ । व॒रि॒मा । वि । प॒प्र॒थ॒ । इन्द्र॑म् । न । म॒ह्ना । पृ॒थि॒वी । च॒न । प्रति॑ । भी॒मः । तुवि॑ष्मान् । च॒र्ष॒णिऽभ्यः॑ । आ॒ऽत॒पः । शिशी॑ते । वज्र॑म् । तेज॑से । न । वंस॑गः ॥
स्वर रहित मन्त्र
दिवश्चिदस्य वरिमा वि पप्रथ इन्द्रं न मह्ना पृथिवी चन प्रति। भीमस्तुविष्माञ्चर्षणिभ्य आतपः शिशीते वज्रं तेजसे न वंसगः ॥
स्वर रहित पद पाठदिवः। चित्। अस्य। वरिमा। वि। पप्रथ। इन्द्रम्। न। मह्ना। पृथिवी। चन। प्रति। भीमः। तुविष्मान्। चर्षणिऽभ्यः। आऽतपः। शिशीते। वज्रम्। तेजसे। न। वंसगः ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 55; मन्त्र » 1
अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
विषय - भीमः तुविष्मान्
पदार्थ -
१. (अस्य) = इस प्रभु का (वरिमा) = उरुत्व व विस्तार (दिवः चित्) = द्युलोक से भी (विपप्रथे) = विशिष्ट विस्तारवाला होता है । द्युलोक से भी महान् वे प्रभु हैं । २. (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु का (मह्ना) = [महिम्ना] महिमा की दृष्टि से पृथिवी (चन) = यह अनन्त विस्तारवाला अन्तरिक्ष भी (प्रति न) = प्रतिनिधित्व करनेवाला नहीं हो सकता । ३. वे प्रभु (भीमः ) = अनुपम शक्ति के कारण शत्रुओं के लिए भयंकर हैं, (तुविष्मान्) = ज्ञानवान् व बलवान् हैं । ऐसे ये प्रभु (चर्षणिभ्यः) = श्रमशील मनुष्यों के लिए (आतपः) = समन्तात् दीप्ति प्राप्त करानेवाले हैं । श्रमशील पुरुष ही प्रज्ञा व पौरुष को प्रवृद्ध कर पाता है और प्रज्ञा व पौरुष से दीप्त होकर यह पुरुष (वंसगः न) = वननीय सुन्दर गतिवाले वृषभ की भाँति (तेजसे) = तेजस्वितापूर्ण कार्यों के लिए (वज्रम्) = अपने क्रियाशीलतारूप वज्र को (शिशीते) = तीक्ष्ण करता है । ४. वस्तुतः क्रियाशीलता ही वह बन है [वज गतौ] जिससे कि इन्द्र [जीवात्मा] सब असुरों [आसुर वृत्तियों] का संहार करता है । यहाँ 'बननीय गतिवाले वृषभ' की उपमा इस बात का संकेत कर रही है कि हमें भी अपनी क्रियाशीलता में सौन्दर्य लाने का प्रयत्न करना है । इस बात का ध्यान रखना है कि हमारी ये क्रियाएँ औरों पर सुखों का वर्षण करनेवाली हों ।
भावार्थ -
भावार्थ - अत्यन्त विस्तार व महिमावाले वे प्रभु हैं । वे क्रियाशील पुरुषों को दीप्त जीवनवाला बनाते हैं ।
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