ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 11/ मन्त्र 7
यस्ते॑ अग्ने सुम॒तिं मर्तो॒ अक्ष॒त्सह॑सः सूनो॒ अति॒ स प्र शृ॑ण्वे । इषं॒ दधा॑नो॒ वह॑मानो॒ अश्वै॒रा स द्यु॒माँ अम॑वान्भूषति॒ द्यून् ॥
स्वर सहित पद पाठयः । ते॒ । अ॒ग्ने॒ । सु॒ऽम॒तिम् । मर्तः॑ । अक्ष॑त् । सह॑सः । सू॒नो॒ इति॑ । अति॑ । सः । प्र । शृ॒ण्वे॒ । इष॑म् । दधा॑नः । वह॑मानः । अश्वैः॑ । आ । सः । द्यु॒ऽमान् । अम॑ऽवान् । भू॒ष॒ति॒ । द्यून् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्ते अग्ने सुमतिं मर्तो अक्षत्सहसः सूनो अति स प्र शृण्वे । इषं दधानो वहमानो अश्वैरा स द्युमाँ अमवान्भूषति द्यून् ॥
स्वर रहित पद पाठयः । ते । अग्ने । सुऽमतिम् । मर्तः । अक्षत् । सहसः । सूनो इति । अति । सः । प्र । शृण्वे । इषम् । दधानः । वहमानः । अश्वैः । आ । सः । द्युऽमान् । अमऽवान् । भूषति । द्यून् ॥ १०.११.७
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 11; मन्त्र » 7
अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
विषय - घुमान्- अमवान्
पदार्थ -
[१] हे (अग्ने) = [अगि गतौ गतिः ज्ञानम्] सर्वज्ञ व (सहसः सूनो) = बल के पुञ्ज सर्वशक्तिमन् प्रभो ! (यः मर्तः) = जो भी मनुष्य (ते) = आपकी (सुमतिम्) = कल्याणी बुद्धि को (अक्षत्) = [अश्नुते ] व्याप्त करता है अर्थात् प्राप्त करता है, (स) = वह अति सर्वलोकातिग (प्रशृण्वे) = ख्याति को प्राप्त करता है। उसकी कीर्ति त्रिलोकी को भी लाँघ जाती है, यह अत्यन्त यशस्वी जीवनवाला होता है। [२] (इषं दधानः) = प्रभु की प्रेरणा को धारण करता हुआ, (अश्वैः) = इन्द्रियों से उस प्रेरणा को (वहमान:) = क्रियारूप में लाता हुआ, (स) = वह पुरुष (आ द्युमान्) = सब ओर से प्रकाशमय जीवनवाला अर्थात् अत्यन्त उत्कृष्ट ज्ञान की ज्योतिवाला तथा (अमवान्) = बल वाला होता हुआ (द्यून् भूषति) = अपने दिनों को अलंकृत करता है, अर्थात् अपने जीवन के एक-एक दिन को यह सुन्दर बनाता है। [३] मन्त्रार्थ से यह बात स्पष्ट है कि प्रभु की प्रेरणा संक्षेप में यही है कि 'ज्ञानी बनो और कर्म में लगे रहने के द्वारा शक्ति का सम्पादन करो'। ज्ञानपूर्वक कर्म करना ही वेद का सार है । यही ब्रह्म व क्षेत्र के विकास का मार्ग है। प्रभु की प्रेरणा को सुनकर यह ज्ञानपूर्वक कर्म करनेवाला पुरुष अपने जीवन के एक-एक दिन को सुन्दर बनाता है और ज्योतिर्मय तथा बलशाली होता है।
भावार्थ - भावार्थ - प्रभु की प्रेरणा को सुनकर हम ज्योतिर्मय शक्ति सम्पन्न जीवनवाले बनें।
इस भाष्य को एडिट करें