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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 136 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 136/ मन्त्र 1
    ऋषिः - मुनयो वातरशनाः देवता - केशिनः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    के॒श्य१॒॑ग्निं के॒शी वि॒षं के॒शी बि॑भर्ति॒ रोद॑सी । के॒शी विश्वं॒ स्व॑र्दृ॒शे के॒शीदं ज्योति॑रुच्यते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    के॒शी । अ॒ग्निम् । के॒शी । वि॒षम् । के॒शी । बि॒भ॒र्ति॒ । रोद॑सी॒ इति॑ । के॒शी । विश्व॑म् । स्वः॑ । दृ॒शे । के॒शी । इ॒दम् । ज्योतिः॑ । उ॒च्य॒ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    केश्य१ग्निं केशी विषं केशी बिभर्ति रोदसी । केशी विश्वं स्वर्दृशे केशीदं ज्योतिरुच्यते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    केशी । अग्निम् । केशी । विषम् । केशी । बिभर्ति । रोदसी इति । केशी । विश्वम् । स्वः । दृशे । केशी । इदम् । ज्योतिः । उच्यते ॥ १०.१३६.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 136; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 24; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] (केशी) = [काशनाद्वा, प्रकाशनाद्वा] ज्ञान के प्रकाशवाला यह व्यक्ति अग्निं बिभर्ति शरीर में स्थित वैश्वानर अग्नि को [ = जाठराग्नि को] धारण करता है। जाठराग्नि को अतिभोजनादि से मन्द नहीं होने देता। इस अग्नि के ठीक रहने से यह कभी रोगाक्रान्त नहीं होता। [२] (केशी) = यह ज्ञान के प्रकाशवाला व्यक्ति (विषम्) = [ जल - रेत : कण] रेतः कणों को शरीर में धारण करता है। प्राणायामादि के द्वारा इनका शरीर में ही व्यापन करता है [विष् व्याप्तौ ] । वस्तुतः शरीर में व्याप्त करने के लिए ही प्रभु ने इन्हें उत्पन्न किया है। इनके शरीर में व्यापन से शरीर पूर्ण स्वस्थ रहता है । [३] यह (केशी) = ज्ञान के प्रकाशवाला व्यक्ति (रोदसी बिभर्ति) = द्यावापृथिवी को, मस्तिष्क व शरीर को धारण करता है। जाठराग्नि के ठीक रहने से रेतः कणों का निर्माण ठीक रूप होता है। इन रेतः कणों के रक्षण से शरीर नीरोग व मस्तिष्क ज्ञानोज्ज्वल बनता है। (केशी) = यह ज्ञानरश्मियोंवाला व्यक्ति (विश्वं स्वः) = सब प्रकाश व ज्ञान को प्राप्त करता है जिससे (दृशे) = तत्त्व का दर्शन कर सके । सब पदार्थों के तत्त्वदर्शन के लिए ज्ञान आवश्यक है। इस तत्त्वदर्शन से ही चीजों का ठीक प्रयोग करता हुआ इनमें आसक्त नहीं होता और जीवन-यात्रा को पूर्ण कर पाता है। (केशी) = यह प्रकाशमय जीवनवाला व्यक्ति 'इदं ज्योतिः' यह प्रकाश ही (उच्यते) = कहा जाता है। अर्थात् यह प्रकाश का पुञ्ज व प्रकाश ही हो जाता है। इसके जीवन का मुख्य गुण यह प्रकाश ही होता है ।

    भावार्थ - भावार्थ- समझदार व्यक्ति जाठराग्नि को ठीक रखता है, उत्पन्न हुए हुए वीर्य का शरीर में ही व्यापन करता है, रेतःरक्षण के द्वारा शरीर को नीरोग व मस्तिष्क को ज्ञानोज्ज्वल बनाता है। सब विज्ञान को प्राप्त करके वस्तु तत्त्व का दर्शन करता है। उनका ठीक प्रयोग करता हुआ प्रकाशमय जीवनवाला हो जाता है ।

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