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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 59 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 59/ मन्त्र 2
    ऋषिः - बन्ध्वादयो गौपायनाः देवता - निर्ऋतिः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    साम॒न्नु रा॒ये नि॑धि॒मन्न्वन्नं॒ करा॑महे॒ सु पु॑रु॒ध श्रवां॑सि । ता नो॒ विश्वा॑नि जरि॒ता म॑मत्तु परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    साम॑न् । नु । रा॒ये । नि॒धि॒ऽमत् । नु । अन्न॑म् । करा॑महे । सु । पु॒रु॒ध । श्रवां॑सि । ता । नः॒ । विश्वा॑नि । ज॒रि॒ता । म॒म॒त्तु॒ । प॒रा॒ऽत॒रम् । सु । निःऽऋ॑तिः । जि॒ही॒ता॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सामन्नु राये निधिमन्न्वन्नं करामहे सु पुरुध श्रवांसि । ता नो विश्वानि जरिता ममत्तु परातरं सु निॠतिर्जिहीताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सामन् । नु । राये । निधिऽमत् । नु । अन्नम् । करामहे । सु । पुरुध । श्रवांसि । ता । नः । विश्वानि । जरिता । ममत्तु । पराऽतरम् । सु । निःऽऋतिः । जिहीताम् ॥ १०.५९.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 59; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    [१] हे (पुरुध) = नाना प्रकार से धारण करनेवाले प्रभो ! (नु) = अब हम (सामन्) = साम के होने पर, अर्थात् साम मन्त्रों से प्रभु के गुणों का गायन करने पर राये धन के लिये (करामहे) = हम पूर्ण पुरुषार्थ करते हैं। प्रभु के स्मरण के साथ धन प्राप्ति के लिये प्रयत्न के होने पर उन प्रयत्नों में पवित्रता बनी रहती है और हमें उन धनों के विजय का गर्व नहीं होता, उन धनों का विजेता हम प्रभु को ही मानते हैं । [२] हम (निधिमत् अन्नं करामहे) = निधिवाले, निधानवाले शरीर में ही स्थिर तत्त्वों को जन्म देनेवाले, रस रुधिर आदि उत्तम धातुओं को उत्पन्न करनेवाले अन्न को हम करते हैं । 'निधिमत् अन्न' स्थिर सात्त्विक अन्न है । [३] इस स्थिर सात्त्विक अन्न के सेवन से हम (सुश्रवांसि) = उत्तम ज्ञानों व यशों को करते हैं । सात्त्विक अन्न हमारी बुद्धि को सात्त्विक करके हमारे जीवन को यशस्वी बनाता है । [४] (नः जरिता) = हमारा स्तवन करनेवाला (ता विश्वानि) = उन सब चीजों को (ममत्तु) = आनन्दपूर्वक आस्वादित करे। वह 'धन, अन्न, ज्ञान व यश' से जीवन में आनन्द का अनुभव करे। और (निर्ऋतिः) = दुर्गति (परातरम्) = बहुत दूर (सुजिहीताम्) = पूर्णतया चली जाये ।

    भावार्थ - भावार्थ- हम प्रभु का स्मरण करते हुए 'धन, अन्न, ज्ञान व यश' को प्राप्त करके दुर्गति से दूर हों और सुगति को प्राप्त करें।

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