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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 23/ मन्त्र 2
    ऋषिः - देवश्रवा देववातश्च भारती देवता - अग्निः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अम॑न्थिष्टां॒ भार॑ता रे॒वद॒ग्निं दे॒वश्र॑वा दे॒ववा॑तः सु॒दक्ष॑म्। अग्ने॒ वि प॑श्य बृह॒ताभि रा॒येषां नो॑ ने॒ता भ॑वता॒दनु॒ द्यून्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अम॑न्थिष्टाम् । भार॑ता । रे॒वत् । अ॒ग्निम् । दे॒वऽश्र॑वाः । दे॒वऽवा॑तः । सु॒ऽदक्ष॑म् । अग्ने॑ । वि । प॒श्य॒ । बृ॒ह॒ता । अ॒भि । रा॒या । इ॒षाम् । नः॒ । ने॒ता । भ॒व॒ता॒त् । अनु॑ । द्यून् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अमन्थिष्टां भारता रेवदग्निं देवश्रवा देववातः सुदक्षम्। अग्ने वि पश्य बृहताभि रायेषां नो नेता भवतादनु द्यून्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अमन्थिष्टाम्। भारता। रेवत्। अग्निम्। देवऽश्रवाः। देवऽवातः। सुऽदक्षम्। अग्ने। वि। पश्य। बृहता। अभि। राया। इषाम्। नः। नेता। भवतात्। अनु। द्यून्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 23; मन्त्र » 2
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 23; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    [१] (देवश्रवाः) = देवों-विद्वानों से ज्ञान प्राप्त करनेवाला तथा (देववात:) = सूर्यादि देवों से प्रेरणा प्राप्त करनेवाला ये दोनों भारता-अपना उचित भरण करनेवाले हैं। ये (अग्निम्) = उस अग्रणी प्रभु का (अमन्थिष्टाम्) = ध्यान द्वारा प्रकाश करते हैं, जो प्रभु (रेवत्) = सम्पूर्ण ऐश्वर्योंवाले हैं और (सुदक्षम्) उत्तम उन्नति व विकास का कारण हैं। [२] ये प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि (अग्रे) = हे परमात्मन् ! आप (बृहता) = वृद्धि के कारणभूत (अभिराया) = आन्तर व बाह्य द्विविध धन से [=ज्ञान व हिरण्य से] (विपश्य) = हमारा विशेषरूप से पालन करें [दृश् = to look after] और आप (अनुद्यून्) = प्रतिदिन (न:) = हमारे लिए (इषाम्) = प्रेरणाओं के नेता प्राप्त करानेवाले (भवतात्) = होइये । इन प्रेरणाओं के अनुसार चलते हुए ही हम अजरामर बन सकेंगे।

    भावार्थ - भावार्थ- प्रभु का हम मन्थन करें। प्रभु हमें उत्कृष्ट प्रेरणा द्वारा उन्नतिपथ पर ले चलेंगे।

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