ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 29/ मन्त्र 1
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - अग्निः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अस्ती॒दम॑धि॒मन्थ॑न॒मस्ति॑ प्र॒जन॑नं कृ॒तम्। ए॒तां वि॒श्पत्नी॒मा भ॑रा॒ग्निं म॑न्थाम पू॒र्वथा॑॥
स्वर सहित पद पाठअस्ति॑ । इ॒दम् । अ॒धि॒ऽमन्थ॑नम् । अस्ति॑ । प्र॒ऽजन॑नम् । कृ॒तम् । ए॒ताम् । वि॒श्पत्नी॑म् । आ । भ॒र॒ । अ॒ग्निम् । म॒न्था॒म॒ । पू॒र्वऽथा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्तीदमधिमन्थनमस्ति प्रजननं कृतम्। एतां विश्पत्नीमा भराग्निं मन्थाम पूर्वथा॥
स्वर रहित पद पाठअस्ति। इदम्। अधिऽमन्थनम्। अस्ति। प्रऽजननम्। कृतम्। एताम्। विश्पत्नीम्। आ। भर। अग्निम्। मन्थाम। पूर्वऽथा॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 29; मन्त्र » 1
अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 32; मन्त्र » 1
अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 32; मन्त्र » 1
विषय - [१] जैसे दूध का जमा रूप दही 'मक्खन' की उत्पत्ति का आधार होती है तथा मथानी [मन्थनदण्ड] उस मक्खन की प्राप्ति का साधन बनती है, इसी प्रकार (इदं अधिमन्थनं अस्ति) = यह बुद्धि [= अन्तःकरण] तो उत्कृष्ट मन्थनदण्ड है तथा सृष्टि के प्रारम्भ में दिये जानेवाला यह गत सूक्त का पुरोडाश [= वेदज्ञान] (प्रजननं कृतं अस्ति) = प्रजनन किया गया है। यह वेदज्ञान ही परमात्म-प्रकाश का आधार बनता है 'सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति' । [२] बुद्धिरूप मन्थनदण्ड द्वारा इस वेदज्ञान रूप दधि का मन्थन करने से ज्ञानप्रकाश की उत्पत्ति होती है। (एताम्) = इस (विश्पत्नीम्) = प्रजाओं की पालिका वेदविद्या को आभर तू अपने में भरनेवाला बन। इस वेदज्ञान से हम पूर्वथा पहले की तरह (अग्निम्) = उस अग्नि नामक प्रभु को (मन्थाम) = मथित करें। इस वेदज्ञान रूप दधि के मन्थन से प्रभु प्रकाश रूप 'नवनीत' को हम प्राप्त करते हैं ।
पदार्थ -
भावार्थ– वेदवाणी रूप दधि के बुद्धि रूप मन्थनदण्ड से मन्थन करने पर परमात्म-प्रकाशरूप नवनीत (मक्खन) की प्राप्ति होती है ।