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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 23/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    क॒था म॒हाम॑वृध॒त्कस्य॒ होतु॑र्य॒ज्ञं जु॑षा॒णो अ॒भि सोम॒मूधः॑। पिब॑न्नुशा॒नो जु॒षमा॑णो॒ अन्धो॑ वव॒क्ष ऋ॒ष्वः शु॑च॒ते धना॑य ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क॒था । म॒हाम् । अ॒वृ॒ध॒त् । कस्य॑ । होतुः॑ । य॒ज्ञम् । जु॒षा॒णः । अ॒भि । सोम॑म् । ऊधः॑ । पिब॑न् । उ॒शा॒नः । जु॒षमा॑णः । अन्धः॑ । व॒व॒क्षे । ऋ॒ष्वः । शु॒च॒ते । धना॑य ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कथा महामवृधत्कस्य होतुर्यज्ञं जुषाणो अभि सोममूधः। पिबन्नुशानो जुषमाणो अन्धो ववक्ष ऋष्वः शुचते धनाय ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कथा। महाम्। अवृधत्। कस्य। होतुः। यज्ञम्। जुषाणः। अभि। सोमम्। ऊधः। पिबन्। उशानः। जुषमाणः। अन्धः। ववक्षे। ऋष्वः। शुचते। धनाय ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 23; मन्त्र » 1
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 9; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] (कस्य होतुः) = किस होता के (यज्ञं जुषाण:) = यज्ञ से प्रीणित होते हुए (कथा) = किस अद्भुत प्रकार से (महाम्) = [मह पूजायाम्] इस पूजा की वृत्तिवाले होता को (अवृधत्) = वे प्रभु बढ़ाते हैं। यह उपासक (सोममभि) = सोमशक्ति का लक्ष्य करके शरीर में सोमोत्पादन के निमित्त (ऊधः) = गौ के ऊधस् से प्राप्य दूध को (पिबन्) = पीता है और (उशानः) = चाहता हुआ (अन्धः) = सोम्य अन्न का (जुषमाणः) = सेवन करता है। यहाँ दूध के स्थान पर ऊधस् शब्द का प्रयोग इस बात का संकेत करता है कि यह ताजा ही दूध-धारोष्ण दूध पीता है तथा 'उशान: ' शब्द का प्रयोग इस बात का संकेत कर रहा है कि भोजन को यह प्रसन्नतापूर्वक ही खाता है। इससे इसके अन्दर उत्तम सोम आदि धातुओं का निर्माण होता है। प्रभु इस दूध व उत्तम अन्न द्वारा ही इस उपासक का वर्धन करते हैं। [२] (ऋष्वः) = वे महान् प्रभु इस उपासक को (शुचते) = पवित्र मार्गों से कमाये जानेवाले (धनाय) = धन के लिए ही (ववक्षे) = [वहति प्रापयति] ले चलते हैं। इस पवित्र धन द्वारा इसका जीवन पवित्र ही बनता है। जीवन में अवनति का कारण अपवित्र आहार व अपवित्र धन ही होता है। आहार व धन की पवित्रता उसके उत्थान का साधन बनती है। यह व्यक्ति यज्ञ आदि उत्तम कर्मों से प्रभु को प्रीणित करनेवाला बनता है।

    भावार्थ - भावार्थ- हम धारोष्ण दूध का प्रयोग करें और सात्त्विक अन्न का प्रसन्नतापूर्वक सेवन करें। पवित्र साधनों से धनार्जन करते हुए यज्ञादि उत्तम कर्म करें। यही प्रभु की प्राप्ति करने का मार्ग है।

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