ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 34/ मन्त्र 1
ऋ॒भुर्विभ्वा॒ वाज॒ इन्द्रो॑ नो॒ अच्छे॒मं य॒ज्ञं र॑त्न॒धेयोप॑ यात। इ॒दा हि वो॑ धि॒षणा॑ दे॒व्यह्ना॒मधा॑त्पी॒तिं सं मदा॑ अग्मता वः ॥१॥
स्वर सहित पद पाठऋ॒भुः । विऽभ्वा॑ । वाजः॑ । इन्द्रः॑ । नः॒ । अच्छ॑ । इ॒मम् । य॒ज्ञम् । र॒त्न॒ऽधेया॑ । उप॑ । यात । इ॒दा । हि । वः॒ । धि॒षणा॑ । दे॒वी । अह्वा॑म् । अधा॑त् । पी॒तिम् । सम् । मदाः॑ । अ॒ग्म॒त॒ । वः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋभुर्विभ्वा वाज इन्द्रो नो अच्छेमं यज्ञं रत्नधेयोप यात। इदा हि वो धिषणा देव्यह्नामधात्पीतिं सं मदा अग्मता वः ॥१॥
स्वर रहित पद पाठऋभुः। विऽभ्वा। वाजः। इन्द्रः। नः। अच्छ। इमम्। यज्ञम्। रत्नऽधेया। उप। यात। इदा। हि। वः। धिषणा। देवी। अह्नाम्। अधात्। पीतिम्। सम्। मदाः। अग्मत। वः ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 34; मन्त्र » 1
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
विषय - 'ऋभु विभ्वा वाज इन्द्र'
पदार्थ -
[१] प्रभु कहते हैं कि (ऋभुः) = ज्ञानदीप्त मस्तिष्कवाला, (विभ्वा) = विशाल हृदयवाला, (वाजः) = शक्ति सम्पन्न शरीरवाला (इन्द्रः) = जितेन्द्रिय पुरुष (नः) = हमारे से प्राप्त कराये गये (इमं यज्ञं अच्छ) = इस जीवन-यज्ञ की ओर (रत्नधेया) = रमणीय तत्त्वों को धारण करने के लिए (उपयात) = प्राप्त हों। वस्तुतः जीवन को यज्ञमय-उत्तम बनाने के लिए आवश्यक है कि हम 'ऋभु, विभ्वा, वाज व इन्द्र' बनें । [२] ऐसा होने पर (इदा) = अब (हि) = निश्चय से (वः) = तुम्हारी (देवी) = दिव्य गुणों का वर्धन करनेवाली (धिषणा) = धारणात्मिका बुद्धि (अह्नाम्) = न नष्ट करने योग्य इन सोमकणों की (पीतिम्) = शरीर के अन्दर व्याप्ति को (अधात्) = धारण करे। (वः) = तुम्हें (मदा:) = वास्तविक आनन्द (सं अग्मत) = सम्यक् प्राप्त हों। सोमरक्षण द्वारा आनन्द की प्राप्ति तो होती ही है ।
भावार्थ - भावार्थ - जीवन को उत्तम बनानेवाले ४ तत्त्व हैं – [क] दीप्त मस्तिष्क, [ख] विशाल हृदय, [ग] शक्ति [घ] जितेन्द्रियता । इन तत्त्वों की प्राप्ति के लिए सोम का रक्षण करें, तब ही जीवन उल्लासमय बनेगा।
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