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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 15 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 15/ मन्त्र 2
    ऋषिः - धरुण आङ्गिरसः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ऋ॒तेन॑ ऋ॒तं ध॒रुणं॑ धारयन्त य॒ज्ञस्य॑ शा॒के प॑र॒मे व्यो॑मन्। दि॒वो धर्म॑न्ध॒रुणे॑ से॒दुषो॒ नॄञ्जा॒तैरजा॑ताँ अ॒भि ये न॑न॒क्षुः ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ॒तेन॑ । ऋ॒तम् । ध॒रुण॑म् । धा॒र॒य॒न्त॒ । य॒ज्ञस्य॑ । शो॒के । प॒र॒मे । विऽओ॑मन् । दि॒वः । धर्म॑न् । ध॒रुणे॑ । से॒दुषः॑ । नॄन् । जा॒तैः । अजा॑तान् । अ॒भि । ये । न॒न॒क्षुः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋतेन ऋतं धरुणं धारयन्त यज्ञस्य शाके परमे व्योमन्। दिवो धर्मन्धरुणे सेदुषो नॄञ्जातैरजाताँ अभि ये ननक्षुः ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋतेन। ऋतम्। धरुणम्। धारयन्त। यज्ञस्य। शाके। परमे। विऽओमन्। दिवः। धर्मन्। धरुणे। सेदुषः। नॄन्। जातैः। अजातान्। अभि। ये। ननक्षुः ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 15; मन्त्र » 2
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 7; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    [१] (ऋतेन) = ऋत के द्वारा, अपने अन्दर ऋत के धारण के द्वारा सब कार्यों को नियमित गति से करने के द्वारा, (परमे व्योमन्) = उत्कृष्ट हृदयाकाश में (यज्ञस्य शाके) = यज्ञ के शक्तिशाली कर्मों के होने पर (ऋतम्) = उस सत्यस्वरूप (धरुणम्) = सबके धारक प्रभु को (धारयन्त) = धारण करते हैं । प्रभु प्राप्ति के लिये आवश्यक है कि हम [क] ऋत का पालन करें, [ख] यज्ञात्मक कर्मों से भोगवृत्ति से ऊपर उठने के द्वारा, हम अपने को शक्तिशाली बनायें । वे प्रभु 'ऋत' हैं, सो ऋत के द्वारा प्राप्त होते हैं। वे 'धरुण' हैं, सो लोक धारण के हेतुभूत यज्ञात्मक कर्मों से प्राप्त होते हैं । [२] प्रभु को धारण वे करते हैं (ये) = जो कि (नॄन्) = उन्नतिपथ पर चलनेवाले लोगों की (अभि) = ओर (ननक्षुः) = (प्र:) = प्राप्त होते हैं। उनके संग में बैठते हैं जो कि (दिवः धरुणे) = स्वर्ग के धारक (धर्मन्) = यज्ञात्मक [धारणात्मक] कर्मों से (सेदुष:) = स्थित होते हैं, तथा (जातैः) = शक्तियों के प्रादुर्भावों से (अजातान्) = जन्ममरण चक्र से ऊपर उठनेवाले हैं, जीवन्मुक्त हैं। इन लोगों का संग हमारे जीवनों को पवित्र बनाता है और हम प्रभु को प्राप्त करते हैं ।

    भावार्थ - भावार्थ - प्रभु प्राप्ति के तीन मुख्य साधन हैं— [क] ऋत का पालन, सब कार्यों को नियमितरूप से करना, [ख] यज्ञात्मक कर्मों में लगे रहने के द्वारा शक्ति को स्थिर रखना, [ग] उत्तम पुरुषों के संग में रहना ।

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