ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 27/ मन्त्र 1
अन॑स्वन्ता॒ सत्प॑तिर्मामहे मे॒ गावा॒ चेति॑ष्ठो॒ असु॑रो म॒घोनः॑। त्रै॒वृ॒ष्णो अ॑ग्ने द॒शभिः॑ स॒हस्रै॒र्वैश्वा॑नर॒ त्र्य॑रुणश्चिकेत ॥१॥
स्वर सहित पद पाठअन॑स्वन्ता । सत्ऽप॑तिः । म॒म॒हे॒ । मे॒ । गावा॑ । चेति॑ष्ठः । असु॑रः । म॒घोनः॑ । त्रै॒वृ॒ष्णः । अ॒ग्ने॒ । द॒शऽभिः॑ । स॒हस्रैः॑ । वैश्वा॑नर । त्रिऽअ॑रुणः । चि॒के॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अनस्वन्ता सत्पतिर्मामहे मे गावा चेतिष्ठो असुरो मघोनः। त्रैवृष्णो अग्ने दशभिः सहस्रैर्वैश्वानर त्र्यरुणश्चिकेत ॥१॥
स्वर रहित पद पाठअनस्वन्ता। सत्ऽपतिः। ममहे। मे। गावा। चेतिष्ठः। असुरः। मघोनः। त्रैवृष्णः। अग्ने। दशऽभिः। सहस्रैः। वैश्वानर। त्रिऽअरुणः। चिकेत ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 27; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 1
विषय - शरीर शकट
पदार्थ -
१. (चेतिष्ठः) = निरतिशय ज्ञानवाला व अधिक-से-अधिक चेतना को प्राप्त करानेवाला, (असुरः) = प्राणशक्ति का संचार करनेवाला, (मघोनः) = ऐश्वर्यशाली, (सत्पतिः) = सज्जनों का पालक प्रभु (मे) = मेरे लिए (अनस्वन्ता) = प्रशस्त शरीर रूप शकटवाले (गावा) = ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रिय रूप दो बैलों को (मामहे) = देते हैं। प्रभु ने जीवनयात्रा की पूर्ति के लिए यह शरीर शकट दिया है - और इसमें ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रिय रूप दो बैलों को जोता है। २. हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (वैश्वानर) = सबको आगे और आगे ले-चलनेवाले प्रभो! इस शरीर रथ में बैठा हुआ (त्रैवृष्णः) = शरीर मन व बुद्धि सभी को शक्तिशाली बनानेवाला यह त्र्यरुणःज्ञान कर्म व उपासना तीनों की ओर चलनेवाला- तीनों का अपने जीवन में समन्वय करनेवाला- (दशभिः सहस्त्रैः) = इन ऋग्वेदोपदिष्ट दश सहस्र ऋचाओं से (चिकेत) = ज्ञानवाला बनता है। ऋचाओं की संख्या १०५५२ है। 'दस हज़ार' का भाव यहाँ लगभग दस हज़ार ही है। यहाँ मुख्य प्रयोजन ऋचाओं की संख्या का प्रतिपादन तो है ही नहीं। इन ऋचाओं के द्वारा पदार्थों के तथा अपने शरीर शकट के गुण धर्मों को खूब समझता हुआ पदार्थों के यथायोग से दृढ़ शकटवाला बनकर जीवनयात्रा में आगे बढ़ता है।
भावार्थ - भावार्थ– प्रभु ने हमें शरीर शकट दिया है। इसमें कर्मेन्द्रिय व ज्ञानेन्द्रिय रूप दो बैल जुते हैं। ऋचाओं से पदार्थों के गुण धर्मों को जानकर इनके ठीक प्रयोग से हम इस शकट को दृढ़ बनाकर जीवनयात्रा को पूरा करें।
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