ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 58/ मन्त्र 1
ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः
देवता - मरुतः
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
तमु॑ नू॒नं तवि॑षीमन्तमेषां स्तु॒षे ग॒णं मारु॑तं॒ नव्य॑सीनाम्। य आ॒श्व॑श्वा॒ अम॑व॒द्वह॑न्त उ॒तेशि॑रे अ॒मृत॑स्य स्व॒राजः॑ ॥१॥
स्वर सहित पद पाठतम् । ऊँ॒ इति॑ । नू॒नम् । तवि॑षीऽमन्तम् । ए॒षा॒म् । स्तु॒षे । ग॒णम् । मारु॑तम् । नव्य॑सीनाम् । ये । आ॒शुऽअ॑श्वाः । अम॑ऽवत् । वह॑न्ते । उ॒त । ई॒शि॒रे॒ । अ॒मृत॑स्य । स्व॒ऽराजः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तमु नूनं तविषीमन्तमेषां स्तुषे गणं मारुतं नव्यसीनाम्। य आश्वश्वा अमवद्वहन्त उतेशिरे अमृतस्य स्वराजः ॥१॥
स्वर रहित पद पाठतम्। ऊँ इति। नूनम्। तविषीऽमन्तम्। एषाम्। स्तुषे। गणम्। मारुतम्। नव्यसीनाम्। ये। आशुऽअश्वाः। अमऽवत्। वहन्ते। उत। ईशिरे। अमृतस्य। स्वऽराजः ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 58; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
विषय - 'तविषीमान्' मारुतगण
पदार्थ -
[१] गतमन्त्र में वर्णित (एषाम्) = इन शासकों के, जो (नव्यसीनाम्) = [नु स्तुतौ] के योग्य हैं इनके (तविषीमन्तम्) = दीप्तिवाले (तम्) = उस (मारुतं गणम्) = मरुद् गण को (नूनं उ) = निश्चय से (स्तुषे) = स्तुत करता हूँ। शासक वर्ग के ये लोग सचमुच प्रशंसनीय जीवनवाले हैं। शौर्य व तेजस्विता से ये दीप्त हैं। [२] (ये) = जो शासक लोग (आशु अश्वः) = शीघ्रगामी अश्वोंवाले हैं, कार्य संचालन के लिये इधर-उधर जाने के लिये जिन के पास तीव्रगामी यान विद्यमान हैं। ये शासक (अमवद्) = बलवान् होते हुए (वहन्ते) = राष्ट्रधुरा का वहन करते हैं। उत और ये शासक लोग (स्वराजः) = अपने जीवन को व्यवस्थित [regulated] करते हुए (अमृतस्य) = नीरोगता के ईशिरे ईश्वर होते हैं। स्वस्थ जीवनवाले होते हुए ये प्रजा का उत्तम शासन कर पाते हैं ।
भावार्थ - भावार्थ- शासक गण दीप्तिवाला, शीघ्रगामी अश्वोंवाला व नियमित जीवन से नीरोगतावाला होकर राष्ट्रधुरा को सबलता से धारण करता है ।
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