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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 15 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 15/ मन्त्र 1
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - अग्निः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    इ॒ममू॒ षु वो॒ अति॑थिमुष॒र्बुधं॒ विश्वा॑सां वि॒शां पति॑मृञ्जसे गि॒रा। वेतीद्दि॒वो ज॒नुषा॒ कच्चि॒दा शुचि॒र्ज्योक्चि॑दत्ति॒ गर्भो॒ यदच्यु॑तम् ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मम् । ऊँ॒ इति॑ । सु । वः॒ । अति॑थिम् । उ॒षः॒ऽबुध॑म् । विश्वा॑साम् । वि॒शाम् । पति॑म् । ऋ॒ञ्ज॒से॒ । गि॒रा । वेति॑ । इत् । दि॒वः । ज॒नुषा॑ । कत् । चि॒त् । आ । शुचिः॑ । ज्योक् । चि॒त् । अ॒त्ति॒ । गर्भः॑ । यत् । अच्यु॑तम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इममू षु वो अतिथिमुषर्बुधं विश्वासां विशां पतिमृञ्जसे गिरा। वेतीद्दिवो जनुषा कच्चिदा शुचिर्ज्योक्चिदत्ति गर्भो यदच्युतम् ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमम्। ऊँ इति। सु। वः। अतिथिम्। उषःऽबुधम्। विश्वासाम्। विशाम्। पतिम्। ऋञ्जसे। गिरा। वेति। इत्। दिवः। जनुषा। कत्। चित्। आ। शुचिः। ज्योक्। चित्। अत्ति। गर्भः। यत्। अच्युतम् ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 15; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 17; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] (इममू) = इस (वः अतिथिम्) = तुम्हारे लिये अतिथिवत् पूज्य, (उषर्बुधम्) = उषाकाल में बोध द्रष्टव्य है । करने योग्य [स्मरणीय] (विश्वासां विशां पतिम्) = सब प्रजाओं के रक्षक प्रभु को उन्ही (सु) = अच्छी प्रकार (गिरा ऋञ्जसे) = स्तुति वाणियों से प्रसाधित करता हूँ । वस्तुतः यह प्रभु - स्मरण ही उपासक को वासनाओं से बचाकर 'भरद्वाज' बनाता है। [२] ये प्रभु (इत्) = निश्चय से (दिवः) = ज्ञान से आवेति समन्तात् दीप्त होते हैं [कान्ति] । ज्ञानदीप्त ये प्रभु जनुषा स्वभाव से ही (कच्चिद् शुचिः) = कुछ अद्भुत ही पवित्रतावाले हैं। ये प्रभु (गर्भ:) = सब के अन्दर वर्तमान होते हुए (ज्योक् चित्) = दीर्घकाल से ही (यद्) = जो (अच्युतम्) = बड़ी दृढ़ वासनाएँ हैं, उन्हें (अत्ति) = खा जाते हैं, विनष्ट कर देते हैं। इनके हृदयस्थ होने पर वहाँ वासनाएँ भस्मीभूत हो जाती हैं। वासनाओं के विनाश से यह उपासक भी उपास्य प्रभु के समान पवित्र व दीप्त हो उठता है।

    भावार्थ - भावार्थ- हम प्रभु को स्तुति-वाणियों द्वारा जीवन में प्रसाधित करने का प्रयत्न करें। ये ज्ञानदीप्त पवित्र प्रभु हृदयस्थ होते हुए हमारी वासनाओं को दग्ध कर देंगे। हम भी उपास्य प्रभु के समान हो उठेंगे।

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