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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 38 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 38/ मन्त्र 5
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ए॒वा ज॑ज्ञा॒नं सह॑से॒ असा॑मि वावृधा॒नं राध॑से च श्रु॒ताय॑। म॒हामु॒ग्रमव॑से विप्र नू॒नमा वि॑वासेम वृत्र॒तूर्ये॑षु ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒व । ज॒ज्ञा॒नम् । सह॑से । असा॑मि । व॒वृ॒धा॒नम् । राध॑से । च॒ । श्रु॒ताय॑ । म॒हाम् । उ॒ग्रम् । अव॑से । वि॒प्र॒ । नू॒नम् । आ । वि॒वा॒से॒म॒ । वृ॒त्र॒ऽतूर्ये॑षु ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एवा जज्ञानं सहसे असामि वावृधानं राधसे च श्रुताय। महामुग्रमवसे विप्र नूनमा विवासेम वृत्रतूर्येषु ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एव। जज्ञानम्। सहसे। असामि। ववृधानम्। राधसे। च। श्रुताय। महाम्। उग्रम्। अवसे। विप्र। नूनम्। आ। विवासेम। वृत्रऽतूर्येषु ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 38; मन्त्र » 5
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 10; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    [१] (एवा) = गतमन्त्र में वर्णित 'यज्ञ, सोमरक्षण, तप, ज्ञान व स्तवन' से (जज्ञानम्) = प्रादुर्भूत होते हुए आपको (वृत्रतूर्येषु) = वासनाओं के संहार रूप कार्यों के निमित्त (नूनम्) = निश्चय से (आविवासेम) = परिचरित करें। [२] हे (विप्र) = मेधाविन् प्रभो ! (असामि वावृधानम्) = पूर्णरूप से वृद्धि को प्राप्त होते हुए (महान्) = महान्, (उग्रम्) = तेजस्वी आपको (सहसे) = शत्रुओं के पराभव के लिये, (राधसे) = सब कार्यसाधक ऐश्वर्यों की प्राप्ति के लिये (च) = और (श्रुताय) = ज्ञान के लिये तथा (अवसे) = रक्षण के लिये हम आपका पूजन करें।

    भावार्थ - भावार्थ- प्रभु का पूजन 'शत्रु मर्षण के लिये, ऐश्वर्य के लिये, ज्ञान के लिये व रक्षण के लिये' होता है। अगले सूक्त में भी 'भरद्वाज बार्हस्पत्य' इन्द्र का स्तवन करते हैं

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