ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 54/ मन्त्र 1
सं पू॑षन्वि॒दुषा॑ नय॒ यो अञ्ज॑सानु॒शास॑ति। य ए॒वेदमिति॒ ब्रव॑त् ॥१॥
स्वर सहित पद पाठसम् । पू॒ष॒न् । वि॒दुषा॑ । न॒य॒ । यः । अञ्ज॑सा । अ॒नु॒ऽशास॑ति । यः । ए॒व । इ॒दम् इति॑ । ब्रव॑त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
सं पूषन्विदुषा नय यो अञ्जसानुशासति। य एवेदमिति ब्रवत् ॥१॥
स्वर रहित पद पाठसम्। पूषन्। विदुषा। नय। यः। अञ्जसा। अनुऽशासति। यः। एव। इदम् इति। ब्रवत् ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 54; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
विषय - विद्वज्जन सम्पर्क
पदार्थ -
[१] हे (पूषन्) = हमारा पोषण करनेवाले प्रभो! हमें आप उस (विदुषा) = ज्ञानी पुरुष के साथ (संनय) = संगत करिये, (यः) = जो कि (अञ्जसा) = [straight on, Truely, Directly, Quickly] सरलता से सत्यता, साक्षात् शीघ्रता से (अनुशासति) = उपदेश करता है । [२] उस विद्वान् से हमें संगत करिये (यः) = जो कि (इदं एव) = 'यह ही न्याय है' (इति ब्रवत्) = इस प्रकार निश्चय करके कहता है। जिसके उपदेश में संदिग्धता व संशय का स्थान नहीं ।
भावार्थ - भावार्थ- ज्ञानी पुरुषों के सम्पर्क से हम ठीक मार्ग का ज्ञान प्राप्त करके उस पर चलनेवाले बनें।
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