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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 9/ मन्त्र 7
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - वैश्वानरः छन्दः - भुरिग्जगती स्वरः - निषादः

    विश्वे॑ दे॒वा अ॑नमस्यन्भिया॒नास्त्वाम॑ग्ने॒ तम॑सि तस्थि॒वांस॑म्। वै॒श्वा॒न॒रो॑ऽवतू॒तये॒ नोऽम॑र्त्योऽवतू॒तये॑ नः ॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वे॑ । दे॒वाः । अ॒न॒म॒स्य॒न् । भि॒या॒नाः । त्वाम् । अ॒ग्ने॒ । तम॑सि । त॒स्थि॒ऽवांस॑म् । वै॒श्वा॒न॒रः । अ॒व॒तु॒ । ऊ॒तये॑ । नः॒ । अम॑र्त्यः । अ॒व॒तु॒ । ऊ॒तये॑ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वे देवा अनमस्यन्भियानास्त्वामग्ने तमसि तस्थिवांसम्। वैश्वानरोऽवतूतये नोऽमर्त्योऽवतूतये नः ॥७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वे। देवाः। अनमस्यन्। भियानाः। त्वाम्। अग्ने। तमसि। तस्थिऽवांसम्। वैश्वानरः। अवतु। ऊतये। नः। अमर्त्यः। अवतु। ऊतये। नः ॥७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 9; मन्त्र » 7
    अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 11; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    [१] गत मन्त्र के अनुसार 'इन्द्रयों, बुद्धि व मन' के भटकने से (तमसि तस्थिवांसम्) = हमारे लिये अन्धकार में स्थित, हमारे से एकदम अज्ञात, हे (अग्ने) = अग्रेणी प्रभो ! (त्वाम्) = आपको (विश्वे देवा:) = सब देववृत्ति के पुरुष (भियाना:) = पापों के दण्ड से भयभीत होते हुए (अनमस्यन्) = नमस्कार करते हैं। अदृश्य भी आपके प्रति झुकते हैं । [२] उन देववृत्ति के पुरुषों की यही आराधना होती है कि (वैश्वानर:) = वह सबका हितकारी प्रभु (ऊतये) = रक्षा के लिए, पाप प्रवृत्तियों से हमें बचाने के लिये, (अवतु) = रक्षित करे। प्रभु का स्मरण ही हमें अशुभ से बचाता है।

    भावार्थ - भावार्थ– देववृत्ति के पुरुष प्रभु-स्मरण करते हुए पाप करने से भयभीत होते हैं। प्रभु-स्मरण उन्हें शुभ मार्ग पर चलानेवाला होता है। अगले सूक्त में 'भरद्वाज बार्हस्पत्य' अग्नि नाम से प्रभु का स्मरण करते हैं -

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