ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 22/ मन्त्र 9
ये च॒ पूर्व॒ ऋष॑यो॒ ये च॒ नूत्ना॒ इन्द्र॒ ब्रह्मा॑णि ज॒नय॑न्त॒ विप्राः॑। अ॒स्मे ते॑ सन्तु स॒ख्या शि॒वानि॑ यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥९॥
स्वर सहित पद पाठये । च॒ । पूर्वे॑ । ऋष॑यः । ये । च॒ । नूत्नाः॑ । इन्द्र॑ । ब्रह्मा॑णि । ज॒नय॑न्त । विप्राः॑ । अ॒स्मे इति॑ । ते॒ । स॒न्तु॒ । स॒ख्या । शि॒वानि॑ । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ये च पूर्व ऋषयो ये च नूत्ना इन्द्र ब्रह्माणि जनयन्त विप्राः। अस्मे ते सन्तु सख्या शिवानि यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥९॥
स्वर रहित पद पाठये। च। पूर्वे। ऋषयः। ये। च। नूत्नाः। इन्द्र। ब्रह्माणि। जनयन्त। विप्राः। अस्मे इति। ते। सन्तु। सख्या। शिवानि। यूयम्। पात। स्वस्तिऽभिः। सदा। नः ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 22; मन्त्र » 9
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
विषय - पुराने और नए ऋषि वेदार्थ का प्रकाश करें
पदार्थ -
पदार्थ - हे (इन्द्र) = ऐश्वर्यवन् आचार्य ! (ये च ऋषयः) = जो सत्य-ज्ञानों के द्रष्टा, (पूर्वे) = काल के गुरुजन और (ये च नूत्ना:) = जो नये शिष्य, नवशिक्षित (विप्राः) = विद्वान् पुरुष हैं (ब्रह्माणि जनयन्त) = वेद-मन्त्रों के अर्थों का प्रकाश करें। हे विद्वन्! तेरी (सख्यानि) = मित्रता कार्य (अस्मे) = हमारे लिये (शिवानि) = कल्याणकारक हों। (यूयम्) = आप लोग, हे विद्वन् ऋषिजनो (नः) = हमारी (सदा) = सदा (स्वस्तिभि) = उत्तम साधनों से (पात) = रक्षा करो।
भावार्थ - भावार्थ- प्राचीन विद्वान् तेरी वाणी वेद के अर्थ का प्रकाश करते रहे हैं। नए विद्वान् भी वेदार्थ का प्रकाश करें कि जिससे जगत् का कल्याण होवे । अगले सूक्त का ऋषि वसिष्ठ इन्द्र नाम से परमात्मा की स्तुति करता है।
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