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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 24/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    योनि॑ष्ट इन्द्र॒ सद॑ने अकारि॒ तमा नृभिः॑ पुरुहूत॒ प्र या॑हि। असो॒ यथा॑ नोऽवि॒ता वृ॒धे च॒ ददो॒ वसू॑नि म॒मद॑श्च॒ सोमैः॑ ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    योनिः॑ । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । सद॑ने । अ॒का॒रि॒ । तम् । आ । नृऽभिः॑ । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । प्र । या॒हि॒ । असः॑ । यथा॑ । नः॒ । अ॒वि॒ता । वृ॒धे । च॒ । ददः॑ । वसू॑नि । म॒मदः॑ । च॒ । सोमैः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    योनिष्ट इन्द्र सदने अकारि तमा नृभिः पुरुहूत प्र याहि। असो यथा नोऽविता वृधे च ददो वसूनि ममदश्च सोमैः ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    योनिः। ते। इन्द्र। सदने। अकारि। तम्। आ। नृऽभिः। पुरुऽहूत। प्र। याहि। असः। यथा। नः। अविता। वृधे। च। ददः। वसूनि। ममदः। च। सोमैः ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 24; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 8; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    पदार्थ- हे (इन्द्र) = ऐश्वर्यवन्! (सदने) = सभा में (ते) = तेरा (योनिः गृहवत्) = स्थान अकारि बने। हे (पुरुहूत) = बहुतों से प्रशंसित ! तू (तम्) = उस मुख्य स्थान को (नृभिः) = नायकों सहित (आ याहि) = प्राप्त कर और (प्र याहि) = प्रयाण कर। (यथा) = जैसे तू (नः) = हमारा (अविता) = रक्षक (असः) = हो। (नः वृधे च) = और हमारी वृद्धि के लिये तू (वसूनि आ ददः) = ऐश्वर्य दे और ग्रहण कर तू (सोमैः च) = सौम्य पुरुषों, ऐश्वर्यों से (ममदः) = तृप्त हो।

    भावार्थ - भावार्थ- सर्वरक्षक परमेश्वर हमारी वृद्धि के लिए नाना ऐश्वर्य प्रदान कर सौम्य पुरुषों और विभिन्न औषधि रसों से हर्ष प्राप्त कराता है।

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