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ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 49/ मन्त्र 1
स॒मु॒द्रज्ये॑ष्ठाः सलि॒लस्य॒ मध्या॑त्पुना॒ना य॒न्त्यनि॑विशमानाः। इन्द्रो॒ या व॒ज्री वृ॑ष॒भो र॒राद॒ ता आपो॑ दे॒वीरि॒ह माम॑वन्तु ॥१॥
स्वर सहित पद पाठस॒मु॒द्रऽज्ये॑ष्ठाः । स॒लि॒लस्य॑ । मध्या॑त् । पु॒ना॒नाः । य॒न्ति॒ । अनि॑ऽविशमानाः । इन्द्रः॑ । या । व॒ज्री । वृ॒ष॒भः । र॒राद॑ । ताः । आपः॑ । दे॒वीः । इ॒ह । माम् । अ॒व॒न्तु॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
समुद्रज्येष्ठाः सलिलस्य मध्यात्पुनाना यन्त्यनिविशमानाः। इन्द्रो या वज्री वृषभो रराद ता आपो देवीरिह मामवन्तु ॥१॥
स्वर रहित पद पाठसमुद्रऽज्येष्ठाः। सलिलस्य। मध्यात्। पुनानाः। यन्ति। अनिऽविशमानाः। इन्द्रः। या। वज्री। वृषभः। रराद। ताः। आपः। देवीः। इह। माम्। अवन्तु ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 49; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
विषय - राष्ट्र रक्षा
पदार्थ -
पदार्थ - (समुद्रज्येष्ठाः) = एक साथ ऊपर उठनेवाले, मेघों में स्थित, (देवी: आपः) = उत्तम जल (अनिविशमानाः) = कहीं भी स्थिर न रहते हुए, (सलिलस्य मध्यात् पुनानाः) = अन्तरिक्ष के बीच में से पवित्र करते हुए (यन्ति) = आते हैं। (याः) = जिनको (वज्री इन्द्रः) = तीव्र बल से युक्त विद्युत् वा सूर्य, (वृषभः) = वर्षणशील मेघ या वायु (रराद) = छिन्न-भिन्न करता है। (ताः आपः) = वे जल (इह) = इस पृथिवी पर (माम्) = मुझ बसे प्रजाजनों को (अवन्तु) = रक्षा करते हैं ।
भावार्थ - भावार्थ- उत्तम प्रजाएँ अपार बलशाली पुरुष को पवित्र जलों के द्वारा राजाध्यक्ष के पद पर अभिषिक्त करे। यह बलशाली राजा राष्ट्र की बिखरी हुई शक्ति को संगठित करके अपने अधीन कर राष्ट्र की रक्षा करे।
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