ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 65/ मन्त्र 5
ए॒ष स्तोमो॑ वरुण मित्र॒ तुभ्यं॒ सोम॑: शु॒क्रो न वा॒यवे॑ऽयामि । अ॒वि॒ष्टं धियो॑ जिगृ॒तं पुरं॑धीर्यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । स्तोमः॑ । व॒रु॒ण॒ । मि॒त्र॒ । तुभ्य॑म् । सोमः॑ । शु॒क्रः । न । वा॒यवे॑ । अ॒या॒मि॒ । अ॒वि॒ष्टम् । धियः॑ । जि॒गृ॒तम् । पुर॑म्ऽधीः । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष स्तोमो वरुण मित्र तुभ्यं सोम: शुक्रो न वायवेऽयामि । अविष्टं धियो जिगृतं पुरंधीर्यूयं पात स्वस्तिभि: सदा नः ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । स्तोमः । वरुण । मित्र । तुभ्यम् । सोमः । शुक्रः । न । वायवे । अयामि । अविष्टम् । धियः । जिगृतम् । पुरम्ऽधीः । यूयम् । पात । स्वस्तिऽभिः । सदा । नः ॥ ७.६५.५
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 65; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 7; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 7; मन्त्र » 5
विषय - विद्वानों द्वारा ज्ञान का उपदेश
पदार्थ -
पदार्थ- (वायवे शुक्रः न) = वायु को जैसे शीघ्र काम करने का सामर्थ्य प्राप्त है, वैसे हे (वरुण) = श्रेष्ठजन! हे (मित्र) = स्नेहयुक्त जन (तुभ्यम्) = तेरे लिये (एषः) = यह (स्तोमः) = स्तुति और (सोमः) = यह ऐश्वर्य (शुक्रः) = कान्तियुक्त होकर तेरी वृद्धि को (अयामि) = प्राप्त हो। आप दोनों (धियः अविष्टं) = सु-कर्मों की रक्षा करो और (पुरन्धीः जिगृतम्) = बहुत से ज्ञान धारण करनेवाली बुद्धियों, ज्ञानों का उपदेश करो। (यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः) = आप हमारा सदा उत्तम उपायों से पालन करें।
भावार्थ - भावार्थ- विद्वान् स्त्री-पुरुष अपनी मेधा व ज्ञान के द्वारा लोगों को ब्रह्मचर्य सेवन व सदाचार के द्वारा जीवन को कान्तिमय व उन्नत बनाने की शिक्षा प्रदान करें। अगले सूक्त का ऋषि वसिष्ठ और देवता मित्रावरुण, आदित्य और सूर्य हैं।
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