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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 77 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 77/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - उषाः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    उपो॑ रुरुचे युव॒तिर्न योषा॒ विश्वं॑ जी॒वं प्र॑सु॒वन्ती॑ च॒रायै॑ । अभू॑द॒ग्निः स॒मिधे॒ मानु॑षाणा॒मक॒र्ज्योति॒र्बाध॑माना॒ तमां॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उपो॒ इति॑ । रु॒रु॒चे॒ । यु॒व॒तिः । न । योषा॑ । विश्व॑म् । जी॒वम् । प्र॒ऽसु॒वन्ती॑ । च॒रायै॑ । अभू॑त् । अ॒ग्निः । स॒म्ऽइधे॑ । मानु॑षाणाम् । अकः॑ । ज्योतिः॑ । बाध॑माना । तमां॑सि ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपो रुरुचे युवतिर्न योषा विश्वं जीवं प्रसुवन्ती चरायै । अभूदग्निः समिधे मानुषाणामकर्ज्योतिर्बाधमाना तमांसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उपो इति । रुरुचे । युवतिः । न । योषा । विश्वम् । जीवम् । प्रऽसुवन्ती । चरायै । अभूत् । अग्निः । सम्ऽइधे । मानुषाणाम् । अकः । ज्योतिः । बाधमाना । तमांसि ॥ ७.७७.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 77; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 24; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    पदार्थ- जैसे (उषा) = प्रभात वेला (उप रुरुचे) = पतिवत् सूर्य के समीप स्त्रीवत् शोभित होती है। वह (विश्वं जीवं चरायै प्रसुवन्ती) = समस्त जीव-लोक को निद्रा से उठाकर विचरने के लिये प्रेरित करती है। (समिधे) = प्रकाश करने के लिये (अग्निः अभूत्) = सूर्य रूप अग्नि प्रकट होता है, (मानुषाणां) = मनुष्यों के लिये (तमांसि बाधमाना ज्योतींषि) = अन्धकारों को दूर करनेवाले प्रकाशों को (अक:) = प्रकट करता है, वैसे ही परमेश्वरी शक्ति (युवतिः योषा न) = युवती स्त्री के समान (विश्वं जीवं) = समस्त विश्व और जीव-संसार को (चरायै प्रसुवन्ती) = कर्म-फल-भोग के लिये उत्पन्न करती हुई (उप उ रुरुचे) = सर्वत्र शोभा दे, (अग्नि:) = वह परमेश्वर अग्नि के समान प्रकाशस्वरूप (समिधे) = ज्ञान प्रकाश करने के लिये (अभूत्) = हो और वही (मानुषाणाम्) = मनुष्यों के हृदय के (तमांसि) = अज्ञानान्धकारों को बाधमाना दूर करता हुआ (ज्योतिः) = वेदमय ज्ञान प्रकाश को (अकः) = उपदेश करता है।

    भावार्थ - भावार्थ- परमेश्वर अपनी परमेश्वरी शक्ति से संसार के समस्त जीवों के कर्मफल भोग की व्यवस्था करता है। तथा मनुष्यों के अज्ञान का नाश करने के लिए सृष्टि के आदि में वेद-ज्ञान का प्रकाश भी करता है।

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