Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 8 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 8/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अग्निः छन्दः - स्वराट्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    इ॒न्धे राजा॒ सम॒र्यो नमो॑भि॒र्यस्य॒ प्रती॑क॒माहु॑तं घृ॒तेन॑। नरो॑ ह॒व्येभि॑रीळते स॒बाध॒ आग्निरग्र॑ उ॒षसा॑मशोचि ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒न्धे । राजा॑ । सम् । अ॒र्यः । नमः॑ऽभिः । यस्य॑ । प्रती॑कम् । आऽहु॑तम् । घृ॒तेन॑ । नरः॑ । ह॒व्येभिः॑ । ई॒ळ॒ते॒ । स॒ऽबाधः॑ । आ । अ॒ग्निः । अग्रे॑ । उ॒षसा॑म् । अ॒शो॒चि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्धे राजा समर्यो नमोभिर्यस्य प्रतीकमाहुतं घृतेन। नरो हव्येभिरीळते सबाध आग्निरग्र उषसामशोचि ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्धे। राजा। सम्। अर्यः। नमःऽभिः। यस्य। प्रतीकम्। आऽहुतम्। घृतेन। नरः। हव्येभिः। ईळते। सऽबाधः। आ। अग्निः। अग्रे। उषसाम्। अशोचि ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 8; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 11; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] वह (राजा) = दीप्त, (अर्यः) = स्वामी प्रभु (नमोभिः) = नमन के द्वारा (समिन्धे) = हृदय देश में दीप्त किया जाता है। हम नम्रता को धारण करके प्रभु का ध्यान करते हैं। (यस्य) = जिस प्रभु का (प्रतीकम्) = स्वरूप घृतेन आहुतम् दीप्ति से आहुत है- जो प्रभु प्रकाश ही प्रकाश के रूप में हैं। [२] (सबाधः) = बाधाओं [पीड़ाओं] से युक्त (नरः) = मनुष्य (हव्येभिः) = हव्य पदार्थों के द्वारा (ईडते) = इस अग्नि का पूजन करते हैं। अग्नि का पूजन यही है कि हम उस उस रोग को शान्त करनेवाले ओषध द्रव्यों का अग्नि में हवन करें। ये द्रव्य सूक्ष्म कणों में विभक्त होकर (श्वास) = के साथ अन्दर जाते हुए, उन बाधाओं को दूर करेंगे। यह (अग्नि:) = यज्ञाग्नि (उषसां अग्ने) = उषाकालों के अग्रभाग में (आ आशोचि) = दीप्त होता है। हम प्रातः प्रबुद्ध होकर अग्निहोत्र आदि पवित्र कार्यों को करने का उपक्रम करें।

    भावार्थ - भावार्थ- हम प्रातः प्रबुद्ध हों। नमन द्वारा हृदयदेश में प्रभु के प्रकाश को, तेजोमयरूप को देखने का प्रयत्न करें और अग्निहोत्र द्वारा सब रागात्मक बाधाओं को अपने से दूर रखने के लिये यत्नशील हों।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top