ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 84/ मन्त्र 1
आ वां॑ राजानावध्व॒रे व॑वृत्यां ह॒व्येभि॑रिन्द्रावरुणा॒ नमो॑भिः । प्र वां॑ घृ॒ताची॑ बा॒ह्वोर्दधा॑ना॒ परि॒ त्मना॒ विषु॑रूपा जिगाति ॥
स्वर सहित पद पाठआ । वा॒म् । रा॒जा॒नौ॒ । अ॒ध्व॒रे । व॒वृ॒त्याम् । ह॒व्येभिः॑ । इ॒न्द्रा॒व॒रु॒णा॒ । नमः॑ऽभिः । प्र । वा॒म् । घृ॒ताची॑ । बा॒ह्वोः । दधा॑ना । परि॑ । त्मना॑ । विषु॑ऽरूपा । जि॒गा॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ वां राजानावध्वरे ववृत्यां हव्येभिरिन्द्रावरुणा नमोभिः । प्र वां घृताची बाह्वोर्दधाना परि त्मना विषुरूपा जिगाति ॥
स्वर रहित पद पाठआ । वाम् । राजानौ । अध्वरे । ववृत्याम् । हव्येभिः । इन्द्रावरुणा । नमःऽभिः । प्र । वाम् । घृताची । बाह्वोः । दधाना । परि । त्मना । विषुऽरूपा । जिगाति ॥ ७.८४.१
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 84; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
विषय - इन्द्र वरुण का वरण
पदार्थ -
पदार्थ- हे (इन्द्रावरुणा) = ऐश्वर्यवन्! हे सर्वश्रेष्ठ ! (राजानौ वां) = दीप्तियुक्त आप दोनों को मैं (हव्येभिः नमोभिः) = अन्नों, शस्त्रों, उत्तम वचनों और आदरयुक्त विनय कार्यों से (ववृत्यां) = वरण करता हूँ। (विषु-रूपा घृताची) = बहुत प्रकार की तेजस्विनी वा स्नेहयुक्त प्रजा (वां) = आप दोनों को (बाह्वोः प्रदधाना) = बाहुओं के समान शत्रुओं को पीड़ा देनेवाले प्रधान पदों पर स्थापित करती हुई, पुरुष को स्त्री के समान (परि जिगाति) = सब प्रकार से प्राप्त हो । जैसे स्त्री (वि-सु-रूपा) = विशेष सुन्दरी, (घृताची) = घृताक्त, अंग-प्रत्यंग स्नातानुलिप्त होकर पुरुष को (बाह्वोः प्रदधाना)= बाहुपाश में लेती हुई उसे (त्मना) = स्वयं (परि जिगाति) = अपनाती है वैसे ही प्रजा भी अनुरक्त होकर उक्त इन्द्रवरुण दोनों को, बाहुवत् सैन्यादि के अध्यक्ष पद पर नियुक्त कर, अपनावे।
भावार्थ - भावार्थ- तेजस्वी राजा और सेनापति को प्रजाजन अन्न, शस्त्र तथा आदरयुक्त वचनों एवं आदेश पालन रूप कार्यों से राष्ट्राध्यक्ष व सेना अध्यक्ष के पदों पर नियुक्त करके स्वीकार करे।
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