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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 17/ मन्त्र 1
    ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    आ या॑हि सुषु॒मा हि त॒ इन्द्र॒ सोमं॒ पिबा॑ इ॒मम् । एदं ब॒र्हिः स॑दो॒ मम॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । या॒हि॒ । सु॒सु॒म । हि । ते॒ । इन्द्र॑ । सोम॑म् । पिब॑ । इ॒मम् । आ । इ॒दम् । ब॒र्हिः । स॒दः॒ । मम॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ याहि सुषुमा हि त इन्द्र सोमं पिबा इमम् । एदं बर्हिः सदो मम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । याहि । सुसुम । हि । ते । इन्द्र । सोमम् । पिब । इमम् । आ । इदम् । बर्हिः । सदः । मम ॥ ८.१७.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 17; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] हे (इन्द्र) = सर्वशक्तिमन् प्रभो ! (आयाहि) = आइये । (ते) = आपकी प्राप्ति के लिये (हि) = ही हमने (सुषुमा) = इस सोम का सवन किया है। (इमं सोमं पिब) = इस सोम का आप इस शरीर में ही पान करिये आपकी उपासना ही हमें वासनाओं से बचाकर सोमरक्षण के योग्य बनाती है। [२] इस प्रकार सोमरक्षण के होने पर (इदम्) = इस (मम) मेरे (बर्हिः) = हृदयासन पर (आसदः) = आप विराजिये । सोमरक्षण से यह हृदयान्तरिक्ष सब वासनाओं के धूम से रहित होकर दीप्त हो उठता है । इस पवित्र हृदय में प्रभु का वास होता है।

    भावार्थ - भावार्थ- हमें प्रभु प्राप्त हों। प्रभु स्मरण द्वारा हम सोम का रक्षण कर पायें। यह सोमरक्षण हमारे हृदय को पवित्र बना दे।

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