ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 24/ मन्त्र 1
सखा॑य॒ आ शि॑षामहि॒ ब्रह्मेन्द्रा॑य व॒ज्रिणे॑ । स्तु॒ष ऊ॒ षु वो॒ नृत॑माय धृ॒ष्णवे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसखा॑यः । आ । शि॒षा॒म॒हि॒ । ब्रह्म॑ । इन्द्रा॑य । व॒ज्रिणे॑ । स्तु॒षे । ऊँ॒ इति॑ । सु । वः॒ । नृऽत॑माय । धृ॒ष्णवे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सखाय आ शिषामहि ब्रह्मेन्द्राय वज्रिणे । स्तुष ऊ षु वो नृतमाय धृष्णवे ॥
स्वर रहित पद पाठसखायः । आ । शिषामहि । ब्रह्म । इन्द्राय । वज्रिणे । स्तुषे । ऊँ इति । सु । वः । नृऽतमाय । धृष्णवे ॥ ८.२४.१
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 24; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
विषय - नृतम्- धृष्णु
पदार्थ -
[१] (सखायः) = हे मित्रो ! हम (वज्रिणे) = वज्रहस्त इन्द्राय शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभु के लिये (ब्रह्म) = ज्ञान की वाणियों के द्वारा (आशिषामहि) = आदरपूर्वक गुणों का वर्णन करते हैं। उस प्रभु के गुणों का का वर्णन करते हुए उन गुणों को धारण करने के लिये यत्नशील होते हैं । [२] (व:) = तुम सब के (नृतमाय) = नेतृतम-सर्वोत्तम नेता धृष्णवे शत्रुओं का धर्षण करनेवाले प्रभु के लिये (उ) = ही (सु) = सम्यक् (स्तुषे) = स्तुति करता हूँ। मैं प्रभु-स्तवन करता हूँ, प्रभु मेरे शत्रुओं का धर्षण करते हैं ।
भावार्थ - भावार्थ-वे प्रभु वज्रहस्त होकर हमारे शत्रुओं का धर्षण करते हैं, वे हमारे सर्वोत्तम नेता हैं। हम सब मिलकर प्रभु के गुणों का ही वर्णन करें। उन्हें धारण करने के लिये यत्नशील हों। इस प्रकार सच्चे स्तोता बनें।
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