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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 79 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 79/ मन्त्र 1
    ऋषिः - कृत्नुर्भार्गवः देवता - सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒यं कृ॒त्नुरगृ॑भीतो विश्व॒जिदु॒द्भिदित्सोम॑: । ऋषि॒र्विप्र॒: काव्ये॑न ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । कृ॒त्नुः । अगृ॑भीतः । वि॒श्व॒ऽजित् । उ॒त्ऽभित् । इत् । सोमः॑ । ऋषिः॑ । विप्रः॑ । काव्ये॑न ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं कृत्नुरगृभीतो विश्वजिदुद्भिदित्सोम: । ऋषिर्विप्र: काव्येन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । कृत्नुः । अगृभीतः । विश्वऽजित् । उत्ऽभित् । इत् । सोमः । ऋषिः । विप्रः । काव्येन ॥ ८.७९.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 79; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 33; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] शरीर में सुरक्षित (अयम्) = यह (सोमः) = सोम (कृत्नुः) = हमें क्रियाशील बनानेवाला है। (अगृभीतः) = यह रोग आदि शत्रुओं से गृहीत नहीं होता (विश्वजित्) = सबको जीतनेवाला है - यही रोगों को पराजित करके हमें स्वास्थ्य को प्राप्त कराता है, वासनाओं को अभिभूत करके पवित्र मनवाला बनाता है तथा बुद्धि की कुण्ठता को नष्ट करके ज्ञानदीप्त जीवनवाला करता है। इस प्रकार यह सोम (उद्भित्) = हमारी सब उन्नतियों को करनेवाला है। [२] यह सोम (ऋषिः) = तत्त्वद्रष्टा है। बुद्धि को तीव्र बना के हमें तत्त्वज्ञान देनेवाला है। (काव्येन) = वेदरूप महान् काव्य के द्वारा यह (विप्रः) = हमारा विशेषरूप से पूरण करनेवाला है।

    भावार्थ - भावार्थ- शरीर में सुरक्षित सोम 'विश्वजित्' है यह हमें शरीर में क्रियाशील, नीरोग, उन्नतिशील व ज्ञानी बनाता है।

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