ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 100/ मन्त्र 1
ऋषिः - रेभसूनू काश्यपौ
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अ॒भी न॑वन्ते अ॒द्रुह॑: प्रि॒यमिन्द्र॑स्य॒ काम्य॑म् । व॒त्सं न पूर्व॒ आयु॑नि जा॒तं रि॑हन्ति मा॒तर॑: ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । न॒व॒न्ते॒ । अ॒द्रुहः॑ । प्रि॒यम् । इन्द्र॑स्य । काम्य॑म् । व॒त्सम् । न । पूर्वे॑ । आयु॑नि । जा॒तम् । रि॒ह॒न्ति॒ । मा॒तरः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभी नवन्ते अद्रुह: प्रियमिन्द्रस्य काम्यम् । वत्सं न पूर्व आयुनि जातं रिहन्ति मातर: ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । नवन्ते । अद्रुहः । प्रियम् । इन्द्रस्य । काम्यम् । वत्सम् । न । पूर्वे । आयुनि । जातम् । रिहन्ति । मातरः ॥ ९.१००.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 100; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
विषय - अद्रुहः- मातरः
पदार्थ -
(अद्रुहः) = द्रोह की वृत्ति से रहित पुरुष (प्रियम्) = इस प्रीति के जनक (इन्द्रस्य काम्यम्) = जितेन्द्रिय पुरुष से चाहने के योग्य इस सोम को (अभिनवन्ते) = प्राप्त होते हैं, इसकी ओर जाते हैं । हृदयों में द्रोह व वैर आदि की भावनायें सोमरक्षण के लिये अनुकूल नहीं होती। (पूर्वे आयुनि) = जीवन के प्रारम्भ में जीवन के प्रारम्भिक भाग अर्थात् ब्रह्मचर्याश्रम में (मातरः) = अपने जीवन का निर्माण करनेवाले व्यक्ति (जातम्) = उत्पन्न हुए हुए इस सोम को (रिहन्ति) = इस प्रकार आस्वादित करते हैं (न) = जैसे कि उत्पन्न हुए हुए (वत्सम्) = बछड़े को (मातरः) = धेनुएँ चाटती हैं। धेनुओं का वत्सों के प्रति जैसा प्रेम होता है, इसी प्रकार सोम के प्रति उन व्यक्तियों का प्रेम होता है, जो अपने जीवन का निर्माण करनेवाले होते हैं।
भावार्थ - भावार्थ-द्रोह शून्यता सोमरक्षण के लिये आवश्यक है। जीवन का निर्माण करनेवाले व्यक्ति सोम का रक्षण करते हैं।
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