ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 19/ मन्त्र 3
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
वृषा॑ पुना॒न आ॒युषु॑ स्त॒नय॒न्नधि॑ ब॒र्हिषि॑ । हरि॒: सन्योनि॒मास॑दत् ॥
स्वर सहित पद पाठवृषा॑ । पु॒ना॒नः । आ॒युषु॑ । स्त॒नय॑न् । अधि॑ । ब॒र्हिषि॑ । हरिः॑ । सन् । योनि॑म् । आ । अ॒स॒द॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
वृषा पुनान आयुषु स्तनयन्नधि बर्हिषि । हरि: सन्योनिमासदत् ॥
स्वर रहित पद पाठवृषा । पुनानः । आयुषु । स्तनयन् । अधि । बर्हिषि । हरिः । सन् । योनिम् । आ । असदत् ॥ ९.१९.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 19; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
विषय - पुनानः हरिः
पदार्थ -
[१] यह सोम [वीर्य] (वृषा) = हमारे पर सुखों का वर्षण करनेवाला है व हमें शक्तिशाली बनानेवाला है। (आयुषु) = गतिशील पुरुषों में (पुनानः) = यह पवित्रता का संचार करनेवाला है। यह (अधि बर्हिषि) = पवित्र हृदय में, वासनाशून्य हृदय में यह (स्तनयन्) = प्रभु के स्तोत्रों का उच्चारण करता है । सोम के रक्षित होने पर हृदय पूर्ण पवित्र बनता है। उस पवित्र हृदय में यह सोमरक्षक प्रभु के नामों का स्मरण करता है। [२] (हरिः सन्) = सब दुःखों का हरण करनेवाला होता हुआ यह (योनिं आसदत्) = सम्पूर्ण संसार के उत्पत्ति स्थान प्रभु में आसीन होता है । सोमरक्षक व्यक्ति अन्ततः प्रभु को प्राप्त करनेवाला होता है ।
भावार्थ - भावार्थ-रक्षित सोम [क] हमें शक्तिशाली बनाता है, [ख] पवित्र करता है, [ग] सब दुःखों का हरण करता है, [घ] प्रभु को प्राप्त कराता है।
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