Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 35 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 35/ मन्त्र 1
    ऋषिः - प्रभुवसुः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    आ न॑: पवस्व॒ धार॑या॒ पव॑मान र॒यिं पृ॒थुम् । यया॒ ज्योति॑र्वि॒दासि॑ नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ नः॒ । प॒व॒स्व॒ । धार॑या । पव॑मान । र॒यिम् । पृ॒थुम् । यया॑ । ज्योतिः॑ । वि॒दासि॑ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ न: पवस्व धारया पवमान रयिं पृथुम् । यया ज्योतिर्विदासि नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ नः । पवस्व । धारया । पवमान । रयिम् । पृथुम् । यया । ज्योतिः । विदासि । नः ॥ ९.३५.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 35; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] हे (पवमान) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाले सोम ! (धारया) = अपनी धारण शक्ति के द्वारा (नः) = हमारे लिये (पृथं रयिम्) = विशाल धन को (आपवस्व) = प्राप्त करा। इस सोम के रक्षण से हम स्वस्थ शरीर बनकर आवश्यक धनों को प्राप्त करनेवाले बनते हैं । [२] हे सोम ! तू हमें उस धारणशक्ति के साथ प्राप्त हो, (यथा) = जिससे (नः) = हमारे लिये (ज्योतिः) = प्रकाश को विदासि प्राप्त कराता है। इस सोम से ही शरीर में ज्ञानाग्नि का दीपन होता है, यह दीप्त ज्ञानाग्नि से हम ज्योति को प्राप्त करते हैं ।

    भावार्थ - भावार्थ- सोम के रक्षण से हमें रयि [धन] व ज्योति [ज्ञान] की प्राप्ति होती है ।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top