ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 35/ मन्त्र 1
आ न॑: पवस्व॒ धार॑या॒ पव॑मान र॒यिं पृ॒थुम् । यया॒ ज्योति॑र्वि॒दासि॑ नः ॥
स्वर सहित पद पाठआ नः॒ । प॒व॒स्व॒ । धार॑या । पव॑मान । र॒यिम् । पृ॒थुम् । यया॑ । ज्योतिः॑ । वि॒दासि॑ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ न: पवस्व धारया पवमान रयिं पृथुम् । यया ज्योतिर्विदासि नः ॥
स्वर रहित पद पाठआ नः । पवस्व । धारया । पवमान । रयिम् । पृथुम् । यया । ज्योतिः । विदासि । नः ॥ ९.३५.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 35; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
विषय - रयि - ज्योति
पदार्थ -
[१] हे (पवमान) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाले सोम ! (धारया) = अपनी धारण शक्ति के द्वारा (नः) = हमारे लिये (पृथं रयिम्) = विशाल धन को (आपवस्व) = प्राप्त करा। इस सोम के रक्षण से हम स्वस्थ शरीर बनकर आवश्यक धनों को प्राप्त करनेवाले बनते हैं । [२] हे सोम ! तू हमें उस धारणशक्ति के साथ प्राप्त हो, (यथा) = जिससे (नः) = हमारे लिये (ज्योतिः) = प्रकाश को विदासि प्राप्त कराता है। इस सोम से ही शरीर में ज्ञानाग्नि का दीपन होता है, यह दीप्त ज्ञानाग्नि से हम ज्योति को प्राप्त करते हैं ।
भावार्थ - भावार्थ- सोम के रक्षण से हमें रयि [धन] व ज्योति [ज्ञान] की प्राप्ति होती है ।
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