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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 38 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 38/ मन्त्र 1
    ऋषिः - रहूगणः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    ए॒ष उ॒ स्य वृषा॒ रथोऽव्यो॒ वारे॑भिरर्षति । गच्छ॒न्वाजं॑ सह॒स्रिण॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒षः । ऊँ॒ इति॑ । स्यः । वृषा॑ । रथः॑ । अव्यः॑ । वारे॑भिः । अ॒र्ष॒ति॒ । गच्छ॑न् । वाज॑म् । स॒ह॒स्रिण॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष उ स्य वृषा रथोऽव्यो वारेभिरर्षति । गच्छन्वाजं सहस्रिणम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । ऊँ इति । स्यः । वृषा । रथः । अव्यः । वारेभिः । अर्षति । गच्छन् । वाजम् । सहस्रिणम् ॥ ९.३८.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 38; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 28; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] (एषः) = यह (उ) = निश्चय से (स्यः) = वह सोम (वृषा) = शक्ति को देनेवाला है। (रथः) = जीवनयात्रा की पूर्ति के लिये रथ के समान है। (अव्यः) = शरीर का रक्षण करनेवालों में उत्तम है। (वारेभिः) = वरणीय धनों के साथ यह (अर्षति) = शरीर में गतिवाला होता है । [२] यह सोम (सहस्त्रिणं वाजम्) = शत संख्यावाली बहुत अधिक (वाजम्) = शक्ति को (गच्छन्) = जाता हुआ होता है। अर्थात् सुरक्षित होने पर यह सोम खूब ही शक्ति को प्राप्त कराता है । अथवा (सहस्रिणम्) = आमोदयुक्त, आनन्दयुक्त बल को यह प्राप्त कराता है।

    भावार्थ - भावार्थ- सुरक्षित सोम जीवनयात्रा की पूर्ति के लिये उत्तम रथ होता है। यह उत्तम रक्षक है । सब वरणीय धनों को प्राप्त कराता है तथा आनन्दयुक्त शक्ति को देता है ।

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