ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 46/ मन्त्र 6
ए॒तं मृ॑जन्ति॒ मर्ज्यं॒ पव॑मानं॒ दश॒ क्षिप॑: । इन्द्रा॑य मत्स॒रं मद॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठए॒तम् । मृ॒ज॒न्ति॒ । मर्ज्य॑म् । पव॑मानम् । दश॑ । क्षिपः॑ । इन्द्रा॑य । म॒त्स॒रम् । मद॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
एतं मृजन्ति मर्ज्यं पवमानं दश क्षिप: । इन्द्राय मत्सरं मदम् ॥
स्वर रहित पद पाठएतम् । मृजन्ति । मर्ज्यम् । पवमानम् । दश । क्षिपः । इन्द्राय । मत्सरम् । मदम् ॥ ९.४६.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 46; मन्त्र » 6
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 6
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 6
विषय - पवमान- मत्सर-मद
पदार्थ -
[१] (दश क्षिपः) = विषय-वासनाओं को अपने से परे फेंकनेवाली दस इन्द्रियाँ (एतम्) = इस (मर्ज्यम्) = जीवन शोधकों में सर्वोत्तम सोम को (मृजन्ति) = शुद्ध करती हैं। इन्द्रियाँ - विषयों में नहीं जाती तो यह सोम पवित्र बना रहता है । [२] यह (पवमानम्) = हमें पवित्र करनेवाला है । (मत्सरम्) = हमारे में आनन्द का संचार करनेवाला है । (मदम्) = हमें एक अध्यात्म मस्ती को देनेवाला है । इस प्रकार इन्द्राय यह हमें उस प्रभु के लिये ले चलनेवाला है।
भावार्थ - भावार्थ-विषयों से ऊपर उठकर हम सोम का रक्षण करें। यह 'पवमान, मत्सर व मद' है । हमें प्रभु को प्राप्त कराता है । यह सोम का रक्षण करनेवाला गम्भीरता से प्रत्येक चीज के तत्त्व को देखनेवाला 'कवि' बनता है, अपनी शक्तियों का ठीक परिपाक करता हुआ यह 'भार्गव' बनता है ' भ्रस्ज पाके' । यह कवि भार्गव कहता है-
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