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ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 54/ मन्त्र 1
अ॒स्य प्र॒त्नामनु॒ द्युतं॑ शु॒क्रं दु॑दुह्रे॒ अह्र॑यः । पय॑: सहस्र॒सामृषि॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्य । प्र॒त्नाम् । अनु॑ । द्युत॑म् । शु॒क्रम् । दु॒दु॒ह्रे॒ । अह्र॑यः । पयः॑ । स॒ह॒स्र॒ऽसाम् । ऋषि॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्य प्रत्नामनु द्युतं शुक्रं दुदुह्रे अह्रयः । पय: सहस्रसामृषिम् ॥
स्वर रहित पद पाठअस्य । प्रत्नाम् । अनु । द्युतम् । शुक्रम् । दुदुह्रे । अह्रयः । पयः । सहस्रऽसाम् । ऋषिम् ॥ ९.५४.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 54; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
विषय - दोहन [वेदवाणी रूप गौ का दोहन]
पदार्थ -
[१] जब सोम शरीर में सुरक्षित होता है, तो यह ज्ञानाग्नि का ईंधन बनकर ज्ञानाग्नि को दीप्त करता है । (अस्य) इस सोम की (प्रत्नाम्) = सदा से चली आ रही, सनातन (द्युतम्) = ज्योति के (अनु) = अनुसार, अर्थात् जितना जितना ये सोम का रक्षण करते हैं, उतना उतना (अह्वयः) = [अहि-wise learned] बुद्धिमान् मनुष्य (सहस्त्रसां ऋषिम्) = अनन्त ज्ञान से सने हुए इस वेद से [ऋषिः वेदः] (शुक्रं पयः) = शुद्ध ज्ञानदुग्ध को दुदुहे दोहते हैं। वेदवाणी गौ है । उसका दीप्त ज्ञान ही दुग्ध है। [२] बुद्धिमान् पुरुष सोम का अपने अन्दर रक्षण करते हैं, जिससे 'तीव्र बुद्धि' बनकर इस ज्ञान का दोहन कर सकें।
भावार्थ - भावार्थ- सोम के अन्दर यह सनातन शक्ति है कि वह बुद्धि को तीव्र बनाता है। समझदार पुरुष इस सोम के रक्षण से तीव्र बुद्धि बनकर वेदज्ञान को प्राप्त करता है।
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