Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 55 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 55/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अवत्सारः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    यवं॑यवं नो॒ अन्ध॑सा पु॒ष्टम्पु॑ष्टं॒ परि॑ स्रव । सोम॒ विश्वा॑ च॒ सौभ॑गा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यव॑म्ऽयवम् । नः॒ । अन्ध॑सा । पु॒ष्टम्ऽपु॑ष्टम् । परि॑ । स्र॒व॒ । सोम॑ । विश्वा॑ । च॒ । सौभ॑गा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यवंयवं नो अन्धसा पुष्टम्पुष्टं परि स्रव । सोम विश्वा च सौभगा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यवम्ऽयवम् । नः । अन्धसा । पुष्टम्ऽपुष्टम् । परि । स्रव । सोम । विश्वा । च । सौभगा ॥ ९.५५.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 55; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 12; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू (नः) = हमारे लिये (अन्धसा) = सोम्य अन्नों के द्वारा (यवं यवम्) = प्रत्येक बुराई के अमिश्रण तथा अच्छाई के मिश्रण को परिस्त्रव प्राप्त करा । सोमरक्षण के उद्देश्य से हम सोम्य अन्नों का ही सेवन करें। यह सोम्य अन्नों का सेवन हमें दुरितों से दूर करके भद्र की ओर ही ले चलनेवाला हो । [२] हे सोम ! (च) = और तू हमारे लिये (विश्वा सौभगा) = सब सौभाग्यों को प्राप्त करानेवाला हों। 'ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः । ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा' ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान व वैराग्य रूप सभी सौभग्य हमें प्राप्त हों । भावार्थ- सोमरक्षण से [क] सब बुराइयाँ दूर होकर अच्छाइयाँ प्राप्त होती हैं, [ख] अंग- प्रत्यंग पुष्ट होता है, [ग] सब सौभाग्य हमें प्राप्त होते हैं ।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top